कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: आँखो से संसार निहारता हूँ….
आँखो से संसार निहारता हूँ....
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उगते-डूबते सुरज की लालिमा को निहारती है ये आँखे,
प्रात भ्रमण में बाग-बगीचों में फुलों को निहारती ये आँखे।
भ्रमण पथ पर मिले प्रेमियों से हाथ मिलाने पर हंसती है ये आँखे,
कभी प्रेम से…
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