कृष्ण कुमार निर्माण की कलम से: दो मुक्तक
दो मुक्तक
यादों को सीने से लगाकर रखता हूँ।
मैं अपने दिल को बहलाकर रखता हूँ।।
कहीं मेरा महबूब दुखी ना हो जाए बस।
इसलिए अपने जख्म छुपाकर रखता हूँ।।
इस तरह से जीवन बशर कर लूंगा मैं।
तेरे ख्यालों से सुहानी डगर…
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