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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रारब्ध का शेष फल

प्रारब्ध का शेष फल दुख भले ही लाख हों, तो क्या मुस्कुराना छोड़ दूं..... कंठ से दबी आवाज निकल रही है जरुर, तो क्या कविता गाना छोड़ दूं...... हो सकता है ईश्वर ने भेजा प्रारब्ध का शेष फल भुगत रहा हूं, तो क्या साहित्य समाज प्रगति का लिखना…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस

कवि दलीचंद जांगिड सातारा: महिला अन्तराष्ट्रीय दिवस पर क्या क्या लिखू, कलम् मेरी मुझ से पुछ रही है.....मेरी दुनिया की प्रथम गुरु "माँ" के गुणगान लिखु, जिसने मुझे जन्म दिया, अंगूली पकड़ कर चलना सिखाया, सुसंस्कृत बनाया या "बेटी" करुणामय ह्रदय…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अंधेरे से प्रकाश की ओर

गुरु के चार प्रकार आध्यात्मिक गुरु गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु , गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात ब्रह्म , तस्मै श्री गुरुवे नम: यह गुरु एक प्रकार का गुरु मंत्र देते है वह शिष्य को आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करके भक्ती के तौर तरिके सिखाकर…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: माँ की ममता भूले नही

माँ की ममता भूले नही ====================== माँ मेरी पालनहार है माँ ही प्रथम गुरु है मेरी माँ ही पाठशाला है मेरी माँ ही पेन्सिल है, रबड़ है माँ ही अंधेरे से निकालकर उज्जीयारे में ले जाती है मेरी दुनिया तेरे आंचल में स्वर्ग…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: स्वदेशी की पुकार

स्वदेशी की पुकार ======================= ओ परदेशी ओ परदेशी......        हमे भूल ना जाना कभी तुम भी स्वदेशी थे       दूर देश जाकर हो गये परदेशी कभी हम साथ साथ         गांव में खेला करते थे सुबह लड़ाई करते        …
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: गतिमान युग का पदार्पण

गतिमान युग का पदार्पण मैं निकला सुकुन लेकर        एक शकून की तलाश में  गांव गलियारे से निकला        एक शहर की ओर.... काम धन्धे की भरमार हो        कुछ लोग मेरे साथ हो रुपयों की तलाश में       रिश्तें नाते पीछे छूट गएं जीवन…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: विश्वकर्मा जयन्ती का गौरव

विश्वकर्मा जयन्ती का गौरव विश्वकर्मा जयन्ती के शुभ अवसर पर खुले है भाग जांगिड समाज के..... टेर विश्वकर्मा जयन्ती के शुभ अवसर पर जागे भाग गुलाल के..... टेर हर कोई विश्वकर्मा जी के भजन गावे कोई कोई चुटकलें सुनावै अलग अलग अंदाज…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: राह थी अनजान…..

राह थी अनजान..... ================ अभागे पैर मेरे चल पड़े ना जाने कौन सी डगर ठहरेंगे ना पत्ता था मुझे भविष्य का ना पत्ता था कर्म भुमी का ना पत्ता था सद मार्ग कहा मेरा मैं तो राही बन चल पड़ा था राह अनजान थी मेरी कभी सोचा ही नही था…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कवि की धनसंपदा

महाराष्ट्र: कवि शब्दों की दुनिया में उपासक स्वरुप होता है, करुणा, दया, क्षमा, याचना, प्रार्थना,उपासना, प्रेम ये सब बालक कवि के प्रेमी मित्र होते है। वह कवि इन छोटे शिशु सखाओं के साथ अठखेलियाँ करता रहता है, बाल लिलाएं करता रहता है, इसीलिए…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से : विरोधक शत्रु नही होते, वे गुरु ही होते है जी

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से : विरोधक शत्रु नही होते, वे गुरु ही होते है जी कुछ लोग रास्ते में.. "गड्ढे" खोदने का काम करें,,, तो परेशान मत होना ये वही लोग हैं जिनकी वजह से "आप".. "छलांग" लगाना सीख जाएँगे...!! …
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