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poet Dalichand Jangid Satara

कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: उथल – पुथल है या प्रकृति की छीना जोरी ……

उथल - पुथल है या प्रकृति की छीना जोरी ...... =================== गर्मी पड़ी इस बार 50 से. डिग्री के उस पार, पाली जोधपुर में मचा था हा हा कार सारा जीव जगत हुआ गर्मी से बै हाल लू से जान गवाई अनेकों ने बूजर्गों का हुआ बुरा हाल अब…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: कर्मों की गठड़ी बांध, मैं चला प्रभु के द्वार…..

कर्मों की गठड़ी बांध, मैं चला प्रभु के द्वार..... ====================== दूर्लभ मानव तन मैंने पाया था, बंद मुठ्ठी में शुभ कर्म साथ लाया था। कुछ शुभ कर्म जन हित में कर गुजरु, यह मन में विचार बार-बार आया था। माँ के गर्भ में प्रभु…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: किताबें पढ़ना लोग भूल गये…?

किताबें पढ़ना लोग भूल गये...? ===================== किताबें पढ़ना भूल गये है अब लोग, अलमारी में पड़ी मन पसंद किताबें वाचनालय में रखी ज्ञान वर्धक किताबें हर विषय को उज्जागर करने वाली इतिहास प्राचीन सबकों सहज बताने वाली ज्ञान के किवाड़…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: नवी बिंदणी घर आई……

नवी बिंदणी घर आई...... ==================== नवी बिंदणी जद घर आई खुशीयां हजार साथे लाई नवी बिंदणी हाथभर घुंघट निकाल आई जद गांव गल्ली री लुगाइयों सगळी देखण आई देख लुगाईयों ने वा घुंघट में मंध मंध मुस्कराई पगे लागण ढूकी देराणीयों…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: मेरे पास कविता है…..

मेरे पास कविता है..... ===================== जब जब मुझे जीवन में दुख आया है, मैंने अपने आप को कविता से जोड़ा है। जब जब मुझे किसी ने तोड़ना चाहा है, मैंने खुद को कविता की ममता से जोड़ा है। जब जब मैं गिरा था, कविताओं ने ही मुझे…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: आँखो से संसार निहारता हूँ….

आँखो से संसार निहारता हूँ.... ===================== उगते-डूबते सुरज की लालिमा को निहारती है ये आँखे, प्रात भ्रमण में बाग-बगीचों में फुलों को निहारती ये आँखे। भ्रमण पथ पर मिले प्रेमियों से हाथ मिलाने पर हंसती है ये आँखे, कभी प्रेम से…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: बुढापे में हुई पति-पत्नी में थोड़ी अनबन…..

बुढापे में हुई पति-पत्नी में थोड़ी अनबन..... ====================== मैं तुम्हारी आज्ञकारी धर्म पत्नी हूँ पिया मुझे अब क्यूँ भूल गये हो बुढ़ापे में पिया मैं पंचवीसी से छाठवी तक वादें निभाती आयी हूँ यौवनकाल में कहते थे हम ना होंगे जूदा…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: जीवन राह नहीं थी इतनी आसान

जीवन राह नहीं थी इतनी आसान ======================= जीवन की राह नहीं थी इतनी आसान जीतना मैंने समझा था इसको पहिचान ऊंची चमक रही खनिजों से भरी पहाड़ी मेरे लिए चढ़ना नहीं था इतना आसान ढलान थी तीव्र फिसलन तेज कमाल रुकना नहीं था सोचे…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: मन चाही मंझिल अब दूर नहीं…..

मन चाही मंझिल अब दूर नहीं..... ................................................. वो झिलमिल दीपक दिख रहा दूर वही तेरी मन चाही मंझिल है मेरे भाई कर्म कर कष्ट दायी कठिन तू पंहुचा अपनी मन चाही मंझिल के समीप क्यू बैठा है थक कर मेरे…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं मरुधर रो रेवासी हूं……

मैं मरुधर रो रेवासी हूं...... ====================== राजस्थान मरुधर देश मारो मैं रेगिस्तान में रेवण वाळो पाणी री कमी हर गरमीयों में हम खास मैं देखण वाळो करु मारा मरुधर देश री बातों हियाळा में ठंड पड़े गणी जोरकी सौमाशा में बरखा पड़े…
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