कवि अशोक शर्मा की कलम से: नयन या नेत्रहीन
नयन या नेत्रहीन
समझ जाता हूँ स्वभावो को मैं, अभावो के संघर्षों को
स्पर्शो को भाषा को , निष्छल हँसी और विश्वासो को
सब कुछ सीखा देती हैं वो आशाओ के आँखे मुझको
हाँ तू देख मुझे और मेरे चलते डरते कदमो को
क्या विषय ,क्या विश्वास, अपने जीवन…
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