दीपक आहूजा की कलम से: हृदय की वेदना
हृदय की वेदना
कोई धड़कनें न सुन ले, हृदय की वेदना संभालिए,
पाषाण बन के बैठ कर, मन की तृष्णा मिटाइए।
कभी स्थिर, कभी विचलित, बदलती यह हर-पल,
प्रियतमा की राह तकते, सिमट जाए यह सकल।
भीषण प्रहार कर रहीं, विगत स्मृतियों की आँधियां,…
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