कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: नवी बिंदणी घर आई……
नवी बिंदणी घर आई......
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नवी बिंदणी जद घर आई
खुशीयां हजार साथे लाई
नवी बिंदणी हाथभर घुंघट निकाल आई
जद गांव गल्ली री लुगाइयों सगळी देखण आई
देख लुगाईयों ने वा घुंघट में मंध मंध मुस्कराई
पगे लागण ढूकी देराणीयों…
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