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Nature is full of joy

धर्म-कर्म:प्रकृति आनंद से भरपूर है; प्राण और शरीर का योग जीवन है

हमारी प्रकृति आनंद से भरपूर है, परन्तु मनुष्यों ने संसार को दुखमय बताया है। दुख और आनंद साथ-साथ नहीं रह सकते। संसार हमारे मन का सृजन है। प्रकृति सदा से है। आनंद से भरी पूरी होने के कारण ही वह सतत् सृजनरत है। संसार इसी का भाग है। तो भी हम…
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