दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: यादें जन्म भूमि की……
यादें जन्म भूमि की......
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हवाओं से कहना की........
वे अपना रुख ना बदले
मैं अपनी जन्म भूमि की
कुछ यादें वही छोड़ आया हूं.....
ना उचाले इधर उधर
स्मर्णिका मेरे नयन दृष्यों की
जन्म भर निवास के लिए
नसीब मेरे नहीं…
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