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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: पंढरपुर धार्मिक यात्रा

महाराष्ट्र यह प्राचीन काल से संतो की भूमी रही है!! आषाढ़ी एकादशी के दिन पंढरपुर मे विठ्ठल मंदीर मे एक धार्मिक यात्रा का हर बर्ष आयोजन होता है जिसमें लाखो की संख्या मे भक्तगण दर्शन का लाभ लेते है!! इसी संदर्भ मे संतो की बहु मुल्य ज्ञान वाणी…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं जवाई बांध हूं

मैं जवाई बांध हूं ##################### मैं जवाई बांध हूं, मैं जवाई बांध हूं मैं मारवाड़ का बड़ा तालाब हूं मैं अनेकों की प्यास बुझाता हूं मैंने अनेक अकाल देखे सहे है मैं सेवाधारी बनकर सबकों मैं पानी हरदम पिलाता रहा हूं मानव पशुओं की…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: भाव विभोर हो जाता हूं

✍️ एक कवि की अलोकिक दुनिया का रहस्य कवि अपनी शब्दावली में अपने ही मुखार बिन्दू से सुनाते हुएं एक दृश्य (पिक्चर) खड़ा कर दिखाता है अपनी कलम से....... नई नई कविताएं लिखने की कल्पनाओं में भाव विभोर हो जाता हूं , संसार को भूलकर शून्य प्रवाह…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: हम है आखिरी पिढ्ढी

हम है आखिरी पिढ्ढी ============================ हम है आखिरी पिढ्ढी कोई हम से पुछे पूर्वज कैसे थे❓ तो......... तो......... यह बचा के रख लेना रे घर मे पूर्वजो की कमाई की निशानी रे एक बसूला, कुल्हाड़ी, बिजना तेल काजली से उठने वाली…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: विश्वास,उम्मीदे जिन्दगी के पेहलू

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अनेक लोगों के समूह को समाज कहते है, एक विशेष जाती को नही, मनुष्य किसी पर विश्वास रखता है तो किसी से उम्मीदे भी रखता है, यही जीवन की रसमय (उपेक्षा, आपेक्षा) धारा है। विश्वास, उम्मीदे, मित्र, समाज, रिश्तें,…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: फिजूल शक मत करना

फिजूल शक मत करना ====================== दीये का काम है जलना हवा ने बै वजह शंका पाल रखी है दीये का काम है अंधेरे को हटाना हवा ने बै वजह दीये से दुश्मनी पाल रखी है दीये की लड़ाई अंधेरे के साथ है हवा ने बै वजह उसे बुझाने की मन मे ठान…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जिज्ञासा से औत प्रौत है जिंदगी

जिज्ञासा से औत प्रौत है जिंदगी ====================== जिंदगी को मैंने खेल समझा था खुद को माना था खिलाड़ी जब जिंदगी की राह पर चलने लगा अनुभव अजब आने लगे संसार सागर है कभी यह सुन रखा था सागर में उतरकर देखा तो पानी पर चलना था नही…
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