अशोक शर्मा की कलम से: हारा हूँ, मरा नही हूँ मैं
बादलो से घिरा हुआ हूँ,क्षितिज अम्बर में ढला नही हूँ मैं।
हारा हूं, मरा नही हूँ मैं।
1. द्वंद ओरो से नही मुझ से हैं,
उत्तेजना से संयम का लड़ना मुझ में हैं।
राहो की ठोकरों से संभलना मुझको हैं,
माना थपेड़े खाये हैं समय के, इन थपेड़ो से टूटा…
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