दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: चिन्ता करता हूं भावी पिडीयों की
चिन्ता करता हूं भावी पिडीयों की
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पीड़ाएं मेरी पर्वत सी हो गई
अब ये पिगलनी चाहिए
एक नदी हिमालय से
सुखे प्यासे राजस्थान के लिए
अब अवश्य निकलनी चाहिए
खेत जमीन बहुत है मेरे पास
पानी बिन ऊगा…
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