कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: कर्मों की गठड़ी बांध, मैं चला प्रभु के द्वार…..
कर्मों की गठड़ी बांध,
मैं चला प्रभु के द्वार.....
======================
दूर्लभ मानव तन मैंने पाया था,
बंद मुठ्ठी में शुभ कर्म साथ लाया था।
कुछ शुभ कर्म जन हित में कर गुजरु,
यह मन में विचार बार-बार आया था।
माँ के गर्भ में प्रभु…
Read More...
Read More...