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Do not forget mother’s love

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रारब्ध का शेष फल

प्रारब्ध का शेष फल दुख भले ही लाख हों, तो क्या मुस्कुराना छोड़ दूं..... कंठ से दबी आवाज निकल रही है जरुर, तो क्या कविता गाना छोड़ दूं...... हो सकता है ईश्वर ने भेजा प्रारब्ध का शेष फल भुगत रहा हूं, तो क्या साहित्य समाज प्रगति का लिखना…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: माँ की ममता भूले नही

माँ की ममता भूले नही ====================== माँ मेरी पालनहार है माँ ही प्रथम गुरु है मेरी माँ ही पाठशाला है मेरी माँ ही पेन्सिल है, रबड़ है माँ ही अंधेरे से निकालकर उज्जीयारे में ले जाती है मेरी दुनिया तेरे आंचल में स्वर्ग…
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