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Deepak Ahuja

दीपक आहूजा वालों की कलम से: वास्तविकता का आभास

वास्तविकता का आभास सरलता से होता है, वास्तविकता का आभास, करने वाला ईश्वर है, क्यों न करूँ फिर विश्वास। कुम्हार का हाथ चले चाक पे, निरंतर अविरल, कृपानिधान की कृपा है, कुम्हार दिखे सफल। दो हाथों के कृत की माया से, संसार वशीभूत, अपने आप…
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दीपक आहूजा वालों की कलम से: पथिक

पथिक पथिक एक है, और पथ हज़ार, दुविधाग्रस्त है, मन का संसार। अमर शाश्वत, क्या इस जग में, विषय विकार पड़े, हर पग पे। कठिन हो गई, जग की हर रीत, कैसा आलिंगन, कैसी ये प्रीत। अंतर्मन में उठता, गहन सवाल, छोटी सी देह में, हृदय विशाल। अपार…
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दीपक आहूजा वालों की कलम से: नाचते मोर

नाचते मोर सावन तो नहीं है, फिर मन में मोर क्यों नाचते, मृदंग बजा-बजा कर, दिलों में सुर क्यों साधते। ऋतु तो है हेमंत की, फिर क्यों स्मृतियाँ गर्म हैं, शिशिर की प्रतीक्षा में, इस जीवन का मर्म है। तृष्णा का यह चक्र, हर मनुष्य में वास…
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दीपक आहूजा वालों की कलम से: प्यार की पराकाष्ठा

प्यार की पराकाष्ठा क्या प्यार की भी कोई, पराकाष्ठा होती है, यह तो इन नैनों की, हरदम जलती ज्योति है। क्षितिज पर दिखता है, प्रेम अनूठा अनुपम, विश्वास, सम्मान, प्यार का, यह है संगम। जैसे पृथ्वी और आकाश का, हो रहा विलयन, वैसे ही…
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दीपक आहूजा वालों की कलम से: जीना काफ़ी नहीं

जीना काफ़ी नहीं जीना काफ़ी नहीं है, उड़ना भी चाहिए, अपने निज स्वभाव से, जुड़ना भी चाहिए। जो पंछी होता तो, ईश्वर के नगर ही जाता, कुछ नयी ऊँचाइयों को, यह हृदय पा जाता। जीना काफ़ी नहीं है, अंदर डूबना भी चाहिए, प्रेम की इन लहरों से, जूझना…
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दीपक आहूजा की कलम से: हृदय की वेदना

हृदय की वेदना कोई धड़कनें न सुन ले, हृदय की वेदना संभालिए, पाषाण बन के बैठ कर, मन की तृष्णा मिटाइए। कभी स्थिर, कभी विचलित, बदलती यह हर-पल, प्रियतमा की राह तकते, सिमट जाए यह सकल। भीषण प्रहार कर रहीं, विगत स्मृतियों की आँधियां,…
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दीपक आहूजा की कलम से: अंतस् की खोज

अंतस् की खोज आज अंतस् में यह कैसी, अविरल गहन शाँति है, विचलित था जो मन मेरा, टूट गई इसकी भ्रांति है। कसक जो उठती थी, आज देखो विलुप्त हो रही, यह ज्ञान चक्षु तो खुल गए, हो गयी नयी क्रांति है। परम शाश्वत, परमानन्द ईश्वर भी, जैसे मिल…
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दीपक आहूजा की कलम से: सकल संसार

सकल संसार मन में पिया की तस्वीर, इस तरह विराजमान है, दिखती है छवि उनकी, सुंदरता का बखान है। सकल संसार ढूँढ कर आया, नैन हो गए भारी, अपने हृदय में डूब कर, तरने की कर ली तैयारी। पीहू बोले, पपीहा बोले,…
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