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Dalichand Jangid Satara

राजस्थान की मायड़ बोली में: परदेशी होईग्या पेट रे कारणीये

परदेशी होईग्या पेट रे कारणीये ................................................ दिन रात दौडीयो पर पेट कोनी भरीयो इण पेट रे कारणीये जाणे काई काई करीयो छोटी उमर में मैं तो गांव छोड़ीयो छोड़ीया दोस्त यार मारा सगळा गयो दूर देश अणजाण…
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राजस्थान की मायड़ बोली में: फागण री मस्ती,गणी है सस्ती

फागण री मस्ती,गणी है सस्ती ======================= जीणी जीणी उड़े रे गुलाल गौरी थारा गांव में..... पेहलो फागण खेलण ने आयो गौरी थारा गांव में..... साथी ड़ा ने साथे लायो चार दिन वास्ते उणने मनायो पेहली होली मनावण आयो गौरी थारा गांव…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कवि दिनकर जी राष्ट्र कवि थे

कवि दिनकर जी राष्ट्र कवि थे ====================== कवि होना खेल नहीं, वो सबसे अलग निराला था, अद्भुत साहस वाला था, वो अद्भुत तेवर वाला था!! एक मनुष्य का होना भाग्य है, एक कवि होना सौभाग्य है!! आठ बर्ष की अल्प आयु में पिता का छाया…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: लक्ष्मण रेखा का पालन करता हूं….

✍️ लेखक की कलम से.......... सब लोग धन की देवी को प्रणाम करते है, हम कवि लोग माँ सरस्वती की "पूजा उपासना" करते है, लोग उगते सुर्य को नमस्कार करते है, हम ढ़लते सुर्य को भी प्रणाम करते है, और तो और बस्ती से दूर विराने में पहाड़ों की तन्हाई…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: आप बीती सुणाऊं मारी बातड़ली

आप बीती सुणाऊं मारी बातड़ली ✍️ कवि कलम् लिख देती है एक हास्य रचना  मैं गयो शहर रा एक ब्याव में सजधज ने कपड़ा नवा पैरने सगळा खाणो खावे खड़ा खड़ा बूट चप्पल पग में पैरने मैं फस गयो ऊभा खाणा में.... सगळा टेबल ऊपर नजर दौड़ाई…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रारब्ध का शेष फल

प्रारब्ध का शेष फल दुख भले ही लाख हों, तो क्या मुस्कुराना छोड़ दूं..... कंठ से दबी आवाज निकल रही है जरुर, तो क्या कविता गाना छोड़ दूं...... हो सकता है ईश्वर ने भेजा प्रारब्ध का शेष फल भुगत रहा हूं, तो क्या साहित्य समाज प्रगति का लिखना…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस

कवि दलीचंद जांगिड सातारा: महिला अन्तराष्ट्रीय दिवस पर क्या क्या लिखू, कलम् मेरी मुझ से पुछ रही है.....मेरी दुनिया की प्रथम गुरु "माँ" के गुणगान लिखु, जिसने मुझे जन्म दिया, अंगूली पकड़ कर चलना सिखाया, सुसंस्कृत बनाया या "बेटी" करुणामय ह्रदय…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अंधेरे से प्रकाश की ओर

गुरु के चार प्रकार आध्यात्मिक गुरु गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु , गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात ब्रह्म , तस्मै श्री गुरुवे नम: यह गुरु एक प्रकार का गुरु मंत्र देते है वह शिष्य को आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करके भक्ती के तौर तरिके सिखाकर…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: माँ की ममता भूले नही

माँ की ममता भूले नही ====================== माँ मेरी पालनहार है माँ ही प्रथम गुरु है मेरी माँ ही पाठशाला है मेरी माँ ही पेन्सिल है, रबड़ है माँ ही अंधेरे से निकालकर उज्जीयारे में ले जाती है मेरी दुनिया तेरे आंचल में स्वर्ग…
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