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Dalichand Jangid Satara

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: रुपयों की खोज…?

ये कैसा जमाना आया ---------------------- वो भी एक जमाना था जब पूर्वजों को काम के बदले में अनाज लेते देखा था हमने हाथ, वेथ, चपटी चार अंगुली यही नाप का पेमाना था उनका सुख चैन के साथ पुरा परिवार था रुपया पैसा कम था पर सुख से वे सब…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: पहुंच पावती अब मिली

पहुंच पावती अब मिली .................................................................................. जुग एक बीत गया         पहुंच पावती के इंतजार में  जांगिड खेत खलियान में         जांगिड कविता संग्रह नाम की एक फसल मैंने जो लगाई…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: विजेता के पाच गुण (पार्ट 2)

सातारा/मुंबई/जीजेडी न्यूज: विजय होने के लिए समाज मे "विजय भव:" तो आपने बुजर्गो को कई बार कहते हुए सुना होगा। अब विजेता के पास जो पाच गुण होना आवश्यक होते है, उन पाच गुणो को सविस्तार से समझना होगा। यह पाच गुण निम्न लिखित है। 1) जिज्ञासा=…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जीवन शैली बदल रही है

जीवन शैली बदल रही है ********** वो एक जमाना था, आज यह भी एक जमाना है जब आमने-सामने मिलकर आपकी शहद्द कैसी है पुछा करते थे हम अब दूर बैठे आकाश मार्ग से रोज सुबह जय श्री विश्वकर्मा जी की वाँटस अप के माध्यम से करते है वो कैसा सुख…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मेरी सोच

खास युवाओं के आत्मविश्वास को प्रोत्साहन देने वाला लेख......... युवाओं की प्रगति के लिये भारत अभियान बने इस सद् भावना से यह लेख लिख रहा हूं.......... महाराष्ट्र/जीजेडी न्यूज: आयु के पन्द्रह व अठरा वर्ष की आयु सिमा मे समाज के हर…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं हिन्दू हूँ, धर्म मारो सनातन है

मैं हिन्दू हूँ, धर्म मारो सनातन है ========================= मैं हिन्दू हूँ ईण रो मने अभिमान है मैं सनातनी हूं ईण रो मने स्वाभिमान है पूजा पाठ हर रोज करु आयो है मोठो त्यौहार पाच अगस्त रो खुशीया झोळी भर लाई है पाच अगस्त तो हर बर्ष…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कारीगर हूं कविता का

कारीगर हूं कविता का ====================== पहले मैं लकड़ी का कारीगर हुआ करता था पर........... अब कारीगर हूं साहब शब्दों की वर्णमाला का कविता, लेख नए नए हर रोज लिखता हूं साहब शमा बांधता हूं हर रोज किसी को अच्छी नही लगती होगी…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं दुकानदार हूं…..

मैं दुकानदार हूं..... *********** मैं दुकानदार हूं ज्यादातर मैं दुकान मे पाया जाता हूं मुख्य मार्केट में चलते नजर गुमाना हर काँन्टर पर मैं ही मैं दिखाई दूंगा सिर दर्द हो, या फिर हो बुखार घर मे रुकने का नाम नही जन सेवा मेरा धर्म है…
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