कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: रुपयों की खोज…?
ये कैसा जमाना आया
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वो भी एक जमाना था
जब पूर्वजों को काम के बदले में
अनाज लेते देखा था हमने
हाथ, वेथ, चपटी चार अंगुली
यही नाप का पेमाना था उनका
सुख चैन के साथ पुरा परिवार था
रुपया पैसा कम था पर सुख से
वे सब…
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