कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जिज्ञासा से औत प्रौत है जिंदगी
जिज्ञासा से औत प्रौत है जिंदगी
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जिंदगी को मैंने खेल समझा था
खुद को माना था खिलाड़ी
जब जिंदगी की राह पर चलने लगा
अनुभव अजब आने लगे
संसार सागर है
कभी यह सुन रखा था
सागर में उतरकर देखा तो
पानी पर चलना था नही…
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