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Call of Swadeshi

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: आप बीती सुणाऊं मारी बातड़ली

आप बीती सुणाऊं मारी बातड़ली ✍️ कवि कलम् लिख देती है एक हास्य रचना  मैं गयो शहर रा एक ब्याव में सजधज ने कपड़ा नवा पैरने सगळा खाणो खावे खड़ा खड़ा बूट चप्पल पग में पैरने मैं फस गयो ऊभा खाणा में.... सगळा टेबल ऊपर नजर दौड़ाई…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रारब्ध का शेष फल

प्रारब्ध का शेष फल दुख भले ही लाख हों, तो क्या मुस्कुराना छोड़ दूं..... कंठ से दबी आवाज निकल रही है जरुर, तो क्या कविता गाना छोड़ दूं...... हो सकता है ईश्वर ने भेजा प्रारब्ध का शेष फल भुगत रहा हूं, तो क्या साहित्य समाज प्रगति का लिखना…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: माँ की ममता भूले नही

माँ की ममता भूले नही ====================== माँ मेरी पालनहार है माँ ही प्रथम गुरु है मेरी माँ ही पाठशाला है मेरी माँ ही पेन्सिल है, रबड़ है माँ ही अंधेरे से निकालकर उज्जीयारे में ले जाती है मेरी दुनिया तेरे आंचल में स्वर्ग…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: स्वदेशी की पुकार

स्वदेशी की पुकार ======================= ओ परदेशी ओ परदेशी......        हमे भूल ना जाना कभी तुम भी स्वदेशी थे       दूर देश जाकर हो गये परदेशी कभी हम साथ साथ         गांव में खेला करते थे सुबह लड़ाई करते        …
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