दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: स्वदेशी की पुकार
स्वदेशी की पुकार
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ओ परदेशी ओ परदेशी......
हमे भूल ना जाना
कभी तुम भी स्वदेशी थे
दूर देश जाकर हो गये परदेशी
कभी हम साथ साथ
गांव में खेला करते थे
सुबह लड़ाई करते
शाम तक दोस्ती कर लेते थे
याद करो वो दिन भाई…
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