स्मृतियां मानवता के महानायक निरंकारी बाबा की : क्रोध से नुक़सान है क्रोध नहीं सबसे प्रेम करना है
काम, क्रोध और लोभ ये नरक के द्वार हैं। इस द्वार की चमक दमक देखकर मन अंदर जाने को लालायित होता है।अवसर पड़ने पर काम ही क्रोध का रूप धारण कर लेता है। कामना में विघ्न पड़ा नहीं कि क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच जाता है।
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