किस्सा गुरु गोरखनाथ का: गुरु गोरखनाथ ने राजा को दिया आशीर्वाद कि उसकी पहली रानी से एक पुत्र की प्राप्ति होगी
पूरणमल के पैदा होने के बाद भोरे के अंदर ही शिक्षा व लालन-पालन की सभी व्यवस्था की गई। 12 वर्ष के बाद पूरणमल को भोरे से बाहर निकाला गया। जब पूरणमल के लिए रिश्ते आने लगे तो उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया। राजा ने पूरणमल को कहा कि वह अपनी छोटी मां (मौसी) के पास जाकर आशीर्वाद ले।
खरखौदा: शहर के छपडेश्वर धाम मंदिर में 10 दिवसीय सांग का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें पंडित लख्मीचंद द्वारा रचित सांग पूरणमल का किस्सा उनके सुपोत्र पंडित विष्णु दत्त शर्मा द्वारा रागिनियों के माध्यम से श्रोताओं को सुनाया गया। बुधवार को पंडित विष्णु दत्त शर्मा ने किस्सा सुनाते हुए बताया कि पंजाब राज्य के शालकोट में राजा सुलेभान राज किया करते थे। उनकी रानी का नाम इंछरादेह था। कोई संतान न होने के कारण राजा ने इंछरादेह की बहन नूनादेह से विवाह कर लिया। दूसरे विवाह के बाद भी राजा को कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई। एक दिन राजा के बाग में गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ आए। जब राजा को गुरु गोरखनाथ के आने की सूचना प्राप्त हुई तो वह अपनी रानियों के साथ बाग में पहुंचे।
गुरु गोरखनाथ ने राजा को आशीर्वाद दिया कि उसकी पहली रानी से एक पुत्र की प्राप्ति होगी। जिसका नाम पूरणमल रखना है। उन्होंने राजा को चेतावनी भी दी कि पूरणमल को भोरे में रखना क्योंकि वह इतना तेजस्वी व सुंदर होगा। जिसे देखकर इंद्र की अप्सराए उसको उठाकर ले जा सकती हैं। पूरणमल के पैदा होने के बाद भोरे के अंदर ही शिक्षा व लालन-पालन की सभी व्यवस्था की गई। 12 वर्ष के बाद पूरणमल को भोरे से बाहर निकाला गया। जब पूरणमल के लिए रिश्ते आने लगे तो उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया। राजा ने पूरणमल को कहा कि वह अपनी छोटी मां (मौसी) के पास जाकर आशीर्वाद ले।
जब वह अपनी मौसी के पास पहुंचा तो उसकी मौसी पूरणमल के रूप को देखकर आसक्त हो जाती है। तब पूरणमल अपनी मौसी को समझाता है कि वह उसका पुत्र है। लेकिन जब उसकी मौसी नहीं मानती तो वह अपनी मौसी से पीछा छुड़ाकर अपनी माता के पास आ जाता है। इसके बाद पूरणमल की मौसी ने राजा से शिकायत की कि पूरणमल ने उसके साथ बेअदबी की है। राजा ने पूरणमल को बुलाकर भरे दरबार में कहा कि उसने अपनी मौसी के साथ बेअदबी की है। इसलिए उसे सजा-ए-मौत की सजा दी जाती है। राजा ने दो जल्लादों के साथ पूरणमल को मौत देने के लिए जंगल में भेज दिया और आदेश दिया कि पूरणमल की दोनों आंखें और खून का कटोरा भरकर उनके सामने लाना। इसके बाद जंगल में ले जाकर दोनों जल्लादों ने पूरणमल की दोनों आंखें निकाल ली और उसे पास के कुएं में डाल दिया।
कुछ देर बाद गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ वहां से गुजर रहे थे तो कुएं पर पानी पीने के लिए रुके। कुएं में पूरणमल की आवाज सुनकर गुरु गोरखनाथ ने उसे कुएं से बाहर निकाल लिया। गुरु गोरखनाथ ने अपने तप बल से पूरणमल की आंखों को ठीक कर दिया और अपना शिष्य बनाकर चौरंगीनाथ नाम दिया। इसके बाद भक्त पूरणमल ने अपना संपूर्ण जीवन बाबा चौरंगीनाथ सन्यासी के रूप में व्यतीत किया। मौसम खराब होने के बावजूद दूरदराज के इलाकों से हजारों श्रोता सांग सुनने के लिए पहुंचे।
इस मौके पर महंत बाबा मोहन राम, आचार्य अमर, पंडित सूर्या हुमायूं पुर, जय भगवान चेयरमैन, एसडीओ नवनीत कंसाला, विवेक दीप, लाला आनंद, सत्यवीर शास्त्री, हनुमान पाराशर, शिवकुमार भेसरू, सुरेंद्र शर्मा, मनोज ठेकेदार ,धर्मेंद्र ठेकेदार व अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
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