कामयाबी के कदम:आज का सबसे बड़ा सफलता का मंत्र खुद को धोखा मत देना
ज्ञान ज्योति दर्पण के माध्यम से आपके सभी के साथ बात करने का मौका मिला है तो सभी को जय जैनेंद्र जी।
यह छोटी सी कहानी आपकी जिंदगी को बदल देगी
मेरा नाम सुरेश चंद जैन है मै दिल्ली में रहता हूं। ज्ञान ज्योति दर्पण के माध्यम से आप सभी के साथ बात करने का मौका मिला है तो सभी को जय जैनेंद्र जी। पहले मैं आपको अपनी जिंदगी के बारे में बता दूं। मेरा जन्म 1954 में हुआ था। हमने सन् 1968 में पढाई पूरी की गुरुकूल में पढे शास्त्री तक पढने के बाद हमें पिता श्री का आदेश हुआ कि सरकारी नौकरी नहीं करोगे जबकि वे स्वयं उच्च पद पर रेलवे में बम्बई (मुम्बई) मे अधिकारी थे। हम दिल्ली के रहने वाले थे। हम परिवार के सदस्य दिल्ली आ गये। हमारे साथ में मेरी ममता मयी माता जी, दो बहनों, एक छोटे भाई को लेकर एक किराये के मकान रहने लगे। हमारे पिता श्री ने बहुत संघर्ष के साथ जीवन को व्यतीत किया। कष्ट सहे पर हमें कहा कि तुम दिल्ली में रहो, यहीं पर कार्य करो तुम्हारे लिए सफल होने का यही मन्त्र है और मेरा आशीर्वाद भी है।
मेरे जीवन के सफर में आप भी मेरे जीवन के हमसफर बनिए
प्रबुद्ध पाठको यहां से एक नई जीवन यात्रा शुरु हुई। अभी मै कुछ वो जीवन के क्षण याद कर रहा हूं जिसका आप भी आनंद लीजिएगा क्योंकि आनंद में रहोगे तो ही कामयाब बनोगे। तो चलिये मेरे जीवन के सफर में आप सब भी मेरे जीवन के हमसफर बनिए। पहले पैसे की बहुत बड़ी कीमत थी। बड़े नोट तो देखने को कम ही मिलते थे। मुझे 8 महीने तक 20 रुपये महीने की नौकरी मिली, फिर 150 रुपये महीने की नौकरी की, सन् 1972 में 380 रुपये महीने, 450 रुपये कुछ समय टैक्सला टेलीविजन मे भोगल में इंपोर्ट डिवीजन में कार्य किया। बहुत परिश्रम से यहां ज्ञान अर्जित किया। सन् 1973 वैवाहिक जीवन आरंभ हुआ बिमला जैन के साथ प्रणय सूत्र में बंध गए थे। जिम्मेदारी बढ गई थी। लेकिन यह भी भाग्य का अपना अलग ही खेल होता है कि शादी के बाद जीवन में सफलता की ओर बढने लगा। सफलता की पायदान दिखाने वाला ज्ञान का उजाला मिला, इस रोशनी में हम आगे बढे, तो एक प्लास्टिक फैक्ट्री में नौकरी की सन् 1974 में 650/ रुपये महीने की मिली। यह नौकरी अपने आपमें खास थी सुबह 9:00 से देर रात को घर पर पहुंचते यहां यह नहीं पता सकते वापस रात को किस समय पहुंचेंगे। क्योंकि घर पर जाने का कोई निश्चित समय नही था।
मालिक का आदेश होता था कि आज का कार्य आज ही समाप्त करो
मालिक का आदेश होता था कि आप आज जो कार्य कर रहे हैं उन्हें आज ही समाप्त करके जाएंगे। स्टोर, ट्रांसपोर्ट, एकाऊंटस, कर्मचारियों को सभी कार्य समझा कर ही आप घर जा सकते हैं। कार्य समय प्रात: 9:00 से रात 11:00 या 12:00 बजे तक का भी होता था इसके बाद भी कोई एक्सट्रा पेमेन्ट नहीं मिलता था। यहीं पर सदर बाजार, बैक का कार्य, ट्रांसपोर्ट बिल्टी बनानी, एसटी फार्म 1, 31- फार्म, सी फार्म, बैंक एकाऊंटस में डेबिट-क्रेडिट सभी कार्य व सभी से किस प्रकार का व्यवहार करना, सामान बाजार मे बेचने जाना वेतन 780 रुपये महीने।
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स्थापित उद्योगपति बनने के पीछे संघर्ष भरी दास्तां
इस सारी दास्तां को आप सभी पाठको के साथ सांझा करने का मतलब केवल इतना है कि आज परमात्मा ने मुझे सफल और स्थापित उद्योगपति बनाया है तो इसके पीछे संघर्ष है, कड़ा परिश्रम है, अनुशासनवद्ध कार्य क्षमता है। और सबसे बड़ी बात समर्पण भाव के साथ किया गया कार्य है। जब मैने नौकरी की तो उसको नौकरी समझ कर नहीं किया। अपने काम को ऐसे किया जैसे हम मंदिर में भगवान की पूजा करते हैं। इसी तरह मालिक का आदेश ऐसे माना जैसे कि हम प्रभु की कृपा का प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। दोस्तो सीधी सी बात हे कि सफलता का कोई शॉटकट नहीं होता। यह आपने तो सुना ही होगा लेकिन मै अपनी 66 साल के कार्य शैली के अनुभव के आधार पर बता रहा हूं।
कामयाबी के लिए कीमत भी चुकानी पड़ती है
दोस्तो हर इंसान कामयाबी चाहता तो है लेकिन कामयाबी के लिए कीमत भी चुकानी पड़ती है, मेहनत करके, बिना स्वार्थ के आदेश को जीवन में व्यवहारिकता देकर के।
तो फिर समझ लीजिए आज का सबसे बड़ा मंत्र क्या है। यदि आप चाहते हैं की कामयाबी मिले तो यह मांगने से नहीं मिलेगी। खाली सोचना ही काफी नहीं होगा। आपको उस दिशा में चलने का कर्म करना होगा, प्राथमिकता कर्म को दीजिए,
कर्म
वह बीज है जो जीवन रुपी धरती में में हर हाल में उगता है। यदि आप किसी के यहां पर नौकरी कर रहे हैं। और वो आपको काम देकर गया है। तो यह मत समझना कि वो तो है नहीं चलो अभी आराम कर लो, जब आएगा तो काम करते दिखाई देंगे। बस यह धोखा आप अपने मालिक को नहीं देंगे यह धोखा खुद को देंगे। क्योंकि आपके कर्म का फल तो आपको ही मिलना है खुद को धोख मत देना दिल लगाकर काम करना तुम्हारे काम का परिणाम शतप्रतिशत तुम्हे मिलेगा।
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