सोनीपत: हृदयविदारक घटना: मां रोना मत, मैं परमात्मा के दर्शन करने जा रहा हूं
शनिवार को स्कूल से लौटने के बाद वंश ने अपने घर की छत पर बने कमरे में फंदा लगा लिया। उस वक्त घर में कोई नहीं था। जब छोटा भाई घर लौटा तो उसने अपने बड़े भाई को फंदे पर लटका देखा। रोते-बिलखते उसने शोर मचाया, जिसके बाद पड़ोसी और परिजन मौके पर पहुंचे। तुरंत पुलिस और वंश के पिता को सूचित किया गया।
सोनीपत, (अजीत कुमार): सोनीपत के आर्य नगर में एक 15 वर्षीय छात्र वंश ने आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट में उसने अपनी मां से कहा, मां रोना मत, मैं परमात्मा के दर्शन करने जा रहा हूं। यह शब्द किसी भी माता-पिता के दिल को चीर देने वाले हैं। परिवार का आरोप है कि स्कूल की टीचर द्वारा की गई पिटाई से आहत होकर वंश ने यह कदम उठाया। परिजन स्कूल टीचर और प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
शनिवार को स्कूल से लौटने के बाद वंश ने अपने घर की छत पर बने कमरे में फंदा लगा लिया। उस वक्त घर में कोई नहीं था। जब छोटा भाई घर लौटा तो उसने अपने बड़े भाई को फंदे पर लटका देखा। रोते-बिलखते उसने शोर मचाया, जिसके बाद पड़ोसी और परिजन मौके पर पहुंचे। तुरंत पुलिस और वंश के पिता को सूचित किया गया।
वंश के शरीर पर मिले पिटाई के निशान ने परिजनों को स्तब्ध कर दिया। पुलिस जांच में जुट गई, जबकि शव को पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया। परिजनों का आरोप है कि स्कूल की टीचर सीमा ने वंश को बुरी तरह पीटा था, जिसके कारण उसके शरीर पर गहरे नील पड़ गए थे। वंश के पिता राजीव के अनुसार, टीचर डे के दिन बोर्ड पर बनी तस्वीर गलती से मिट गई थी, जिसके चलते टीचर ने उसे सजा दी। यह घटना वंश के लिए असहनीय साबित हुई।
आत्महत्या करने से पहले वंश ने पेंसिल से एक सुसाइड नोट लिखा, जिसमें उसने अपनी मां और भाई से माफी मांगी और कहा, मां रोना मत। मैं परमात्मा के दर्शन करने जा रहा हूं। यह नोट वंश की मर्माहत स्थिति को बयां करता है, जिसमें वह अपने दुखों से निजात पाने की चाह में ईश्वर की शरण में जाने की बात कर रहा था।
वंश की मौत के बाद उसके परिजन आक्रोशित थे और स्कूल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे थे। पुलिस ने मामले की जांच और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई का आश्वासन दिया। एसीपी राहुल देव ने परिजनों को समझाया और शांति बनाए रखने का आग्रह किया।
वंश की आत्महत्या ने समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है – क्या हमारे स्कूलों में बच्चों को सिखाने का यही तरीका होना चाहिए? शिक्षकों की जिम्मेदारी केवल पढ़ाना नहीं, बल्कि बच्चों के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना है। वंश की यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि एक छोटी सी गलती के लिए सजा किस हद तक उचित है?
यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, हमारे समाज के लिए एक चेतावनी भी है। बच्चों की भावनाओं को समझना और उनके प्रति संवेदनशील होना आज की शिक्षा प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा हो। वंश की आत्महत्या ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें अपने बच्चों को सुरक्षित और खुशहाल वातावरण कैसे प्रदान करना चाहिए।
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