सोनीपत: भौतिक मानसिक आचार-व्यवहार संग आंतरिक संतोष पाएं: डॉ. श्रीमणिभद्र मुनि   

श्री एसएस जैन सभा, सेक्टर 15 के जैन स्थानक में मंगलवार को डॉ. मुनि ने मंगलकारी प्रवचनों की रसधारा प्रवाहित की। उन्होंन ेकहा कि लोभ का प्रभाव व्यक्ति के आचार-व्यवहार और मानसिक स्थिति पर पड़ता है, उसे अस्थायी संतोष की ओर खींचता है।

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सोनीपत, अजीत कुमार: नेपाल केसरी राष्ट्र संत और मानव मिलन के संस्थापक डॉ. श्रीमणिभद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि लोभ, मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियों में से एक प्रमुख प्रवृत्ति है, जिसका असर हमारे जीवन के हर पहलू पर दिखाई देता है। यह प्रवृत्ति केवल भौतिक लाभ तक सीमित नहीं है, इसमें मानसिक संतोष की खोज, स्वार्थपूर्ण महत्वाकांक्षाएं और अनावश्यक चीजों की लालसा भी शामिल है।

श्री एसएस जैन सभा, सेक्टर 15 के जैन स्थानक में मंगलवार को डॉ. मुनि ने मंगलकारी प्रवचनों की रसधारा प्रवाहित की। उन्होंन ेकहा कि लोभ का प्रभाव व्यक्ति के आचार-व्यवहार और मानसिक स्थिति पर पड़ता है, उसे अस्थायी संतोष की ओर खींचता है। लोभ केवल धन या भौतिक वस्तुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक शांति, सम्मान या आत्मसंतोष की चाह में भी झलकता है। इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव यह है कि व्यक्ति निरंतर अधिक लाभ की ओर बढ़ता है, जिससे वह असंतोष और अधूरेपन की भावना से घिर जाता है। जैसे ही वह एक सुख प्राप्त करता है, वह दूसरे की तलाश में आगे बढ़ जाता है, और यह चक्र जीवन के अंत तक चलता रहता है, जिससे व्यक्ति कभी भी पूर्ण संतुष्ट नहीं हो पाता। लोभ मनुष्य को स्थायी सुख और संतोष से दूर ले जाता है। यह उसे अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं के पीछे भागने पर मजबूर करता है, जिससे वह जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूल जाता है। धार्मिक कार्यों का केवल लाभ के लिए किया जाना, समाज में असंतुलन और पारिवारिक संबंधों में तनाव लोभ के दुष्परिणाम हैं।

उन्होंने संतोष, समर्पण और शांति की भावना अपनाने का आह्वान किया, जिससे व्यक्ति लोभ से मुक्त होकर आंतरिक शांति पा सकता है।

 

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