पानीपत: अपनी बोली पर लाज नहीं नाज करिए: ओलंपियन नीरज चोपड़ा
गोल्डन ब्वाय नीरज चोपड़ा ने कहा की जिस बोली को बोलते बोलते हम बड़े हुए हैं। उसी बोली को ना बोलकर हम उसे क्यों छोटा करते हैं। मुझे विश्व के देशों में जाने का मौका मिला वहां सवालों के जवाब मैने अपनी बोली में दिए।
- बोली खाेई नहीं सोई हुई है
- हरियाणावी बोली मां तो राजस्थानी बोली मेरी मौसी है
पानीपत: ओलंपिक स्वर्ण विजेता नीरज चोपड़ा ने कहा है कि अपनी बोली बोलने में लाज नहीं नाज कीजिए। क्षेत्रीय बोलियों को मान सम्मान दीजिए। बोलियों की क्रांति का हिस्सा बनिए। बोली खोई नहीं सोई है। हरियाणावी बोली मां तो राजस्थानी बोली मेरी मौसी है। वे रविवार को संस्कृति मार्डन स्कूल गांव खंडरा पानीपत में आयोजित पत्रकार वार्ता में बोल रहे थे।
बोलियों में फ़िल्म, वेब सिरीज़ बनाने वाले ओटीटी प्लाट्फोर्म स्टेज का ब्रांड ऐम्बेसडर नियुक्त होने पर नीरज ने कहा कि घर और गांव में हम हमारी बोली में बात करते हैं। सुख दुःख की भावनाएं व्यक्त करते हैं। एक सवाल के जवाब में कहा कि बोली मान्यता मिले या ना मिले इसे छोड़कर अपनी बोली को बोलो। भले ही बोलियों का कोई व्याकरण नहीं है पर किस्से, कहानियां, लोक कथाएं सब बोलियों में हैं। जितना साहित्य बोलियों में है उतना किसी भाषा में नहीं मिलता।
गोल्डन ब्वाय नीरज चोपड़ा ने कहा की जिस बोली को बोलते बोलते हम बड़े हुए हैं। उसी बोली को ना बोलकर हम उसे क्यों छोटा करते हैं। मुझे विश्व के देशों में जाने का मौका मिला वहां सवालों के जवाब मैने अपनी बोली में दिए। सबसे खास बात यह है कि अपनी बोली में आप अपने दिल की बात सही तरीके से रखते हैं क्योकि आप उसके जानकार हैं। दूसरी बात जो आपकी बोली नहीं समझते वे भी समझने लगेंगे। जैसे हम दूसरी भाषाओं को पढते हैं बोलते हैं वो भी हमारी बोली को सुनेंगे समझेंगे।
नीरज ने कहा कि स्टेज हरियाणावी, राजस्थानी बोली में काम करता है। मेरी प्रेरणा महाराणा प्रताप हैं। महाराणा प्रताप का शस्त्र भाला है और भाला ही मेरा खेल है। स्टेज के संस्थापक विनय सिंघल ने कहा कि नीरज चोपड़ा को ब्रांड ऐम्बैसडर बनाने के पीछे हमारा सबसे बड़ा कारण नीरज अपनी मां बोली को सम्मान देते हैं। खेल से तो युवाओं के लिए प्रेरणा दी, अपनी बोली और संस्कृति के प्रति प्रेम से भी प्रेरणा लेनी चाहिए। स्टेज के सह संस्थापक शशांक वैष्णव और प्रवीण सिंघल ने कहा कि क्षेत्रीय बोलियों के प्रति युवाओं का प्रेम और सम्मान बढेगा। हरियाणा और राजस्थान के फ़िल्म मेकर जहां फ़िल्म बनाने के लिए संघर्षरत थे, आज इन प्रदेशों में हर महीने पांच से छह वेब सिरीज़ और फ़िल्मों की शूटिंग कर रहे हैं। क्षेत्रीय बोलियों के लेखकों, अभिनेताओं और फ़िल्म से जुड़े अन्य रोज़गार मुहैया करवाने का भी प्रयास किया है। क्षेत्रीय भाषा में बने कांटेंट को पूरा विश्व देखेगा।
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