सोनीपत: श्रद्धा और भक्ति का अनुपम संगम; दादा बाला सैय्यद पर दो दिन चलेगा दीपावली का मेला
दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने अपने इष्ट को नमन करते हुए चादर चढ़ाई, दीप जलाए और प्रसाद ग्रहण किया। धार्मिक भजन और सूफी कव्वालियों की प्रस्तुति ने मेले को भक्ति के रंग से सराबोर कर दिया, यहां उपस्थित हर व्यक्ति आत्मिक शांति का अनुभव कर रहा था।
- 1857 की क्रांति से जुड़ी है ऐतिहासिक मान्यता
- श्रद्धा के समर्पण से हो रहा नवनिर्माण
- बच्चों के लिए रंग-बिरंगा बाजार
- संदेश मानवता का, समर्पण सेवा का
सोनीपत, नरेंद्र शर्मा परवाना/अजीत कुमार: जय दादा बाल सैयद सेवा समिति द्वारा दीपावली के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय मेले में मानवता, एकता और भक्ति का अद्भुत उदाहरण पेश किया। यहां पर हिंदू-मुस्लिम श्रद्धालुओं ने मिलकर पूजा-अर्चना की, जिससे यह मेला एक अनूठे सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बन गया। दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने अपने इष्ट को नमन करते हुए चादर चढ़ाई, दीप जलाए और प्रसाद ग्रहण किया। धार्मिक भजन और सूफी कव्वालियों की प्रस्तुति ने मेले को भक्ति के रंग से सराबोर कर दिया, यहां उपस्थित हर व्यक्ति आत्मिक शांति का अनुभव कर रहा था।
इस पवित्र स्थल का ऐतिहासिक महत्व है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह स्थान 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शहीद हुए सैयद का स्थान है। जब रेलवे लाइन बनाने का प्रयास किया गया, तो चमत्कारी घटनाओं के कारण यह काम अधूरा छोड़ दिया गया, और इसके बाद से लोगों ने यहां पूजा-अर्चना करना शुरू कर दिया। यह स्थल हिंदू और मुस्लिम समुदाय के श्रद्धालुओं की सेवा और भक्ति का सजीव उदाहरण बना, जहां जाति, धर्म, और वर्ग की दीवारें गिर जाती हैं, और सिर्फ मानवता का संदेश जीवंत होता है।
दादा वाला सैयद मेले का आयोजन और यहां का नवनिर्माण पूर्णतः भक्तों के योगदान से संभव हुआ है। हर वर्ग के व्यक्ति ने अपनी श्रद्धा के अनुसार अपना योगदान दिया है, किसी ने एक ईंट, किसी ने सौ रुपये, तो किसी ने अपनी सेवाएं समर्पित की हैं। यही योगदान यहां के भव्य नवनिर्माण का आधार है, जो इस स्थान को और भी सुंदर और आकर्षक बना रहा है। यह स्थान भक्तों के योगदान से सजकर एक दिव्यता, भव्यता श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है।
मेले में बच्चों और परिवारों के लिए एक रंग-बिरंगा बाजार भी सजीव हो उठा है। यहां बच्चों के लिए रंग-बिरंगे पक्षियों के खिलौने, ढोल, मंजीरे, बत्तख आदि जैसे खिलौनों का अद्भुत संग्रह उपलब्ध है, जो उनकी उत्सुकता को बढ़ाते हैं। इस बाजार की चमक-दमक और खिलौनों की विविधता बच्चों के लिए सपनों की दुनिया जैसी लगती है।
दादा वाला सैयद मेला श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है, यह धार्मिक एकता का संदेश देता है। यहां हिंदू-मुस्लिम मिलकर पूजा करते हैं और एक दूसरे के साथ सामूहिक भावना में जुड़े रहते हैं। यह मेला हमें यह सिखाता है कि चाहे हम किसी भी धर्म से हों, सच्ची श्रद्धा और सेवा का मार्ग एक ही होता है मानवता का।
जय दादा वाला सैयद सेवा समिति के प्रधान श्रीपाल खत्री इनके साथ में सुरेंद्र गुलिया, राकेश राठी, सुरेंद्र राठी व मनोज जांगडा यह सभी अपने सहयोगी साथियों के साथ में व्यवस्थाओं का संभाले हुए थे और बहुत ही खूबसूरत सा नजारा देखने को मिला।
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