सतकुम्भा उत्सव 2021: जानिए क्या है जीवन का असली उदेश्य
जय हिंद दोस्तों आज हम एक यात्रा पर हैं और हमारे साथ में चल रहे हैं एक ब्राह्मण देवता उन पास शंकर जी और हम बात करेंगे चलते-चलते सफर के अंदर क्योंकि आज भी हमारे साथ ही भी बने हुए हैं श्री कृष्ण भगवान जिस तरह से अर्जुन के सारथी बने थे तो आज इन्होंने यह सारथी की भूमिका अदा करने का जिम्मा लिया है तो आज हम इनके कुछ अनुभव लेंगे इसी प्रकार से यह गति जो चल रही है शब्दों की जो गति चलेगी और मैं अब लेकर चल रहा हूं हमारे बहुत ही दिल अजीज बहुत ही प्यारे उमाशंकर गौड़ जी।
जय हिंद दोस्तों आज हम एक यात्रा पर हैं और हमारे साथ में चल रहे हैं एक ब्राह्मण देवता के पास उमा शंकर जी और हम बात करेंगे चलते-चलते सफर के अंदर। क्योंकि आज भी हमारे साथ ही भी बने हुए हैं। श्री कृष्ण भगवान जिस तरह से अर्जुन के सारथी बने थे। तो आज इन्होंने यह सारथी की भूमिका अदा करने का जिम्मा लिया है। तो आज हम इनके कुछ अनुभव लेंगे। इसी प्रकार से यह गति जो चल रही है। शब्दों की जो गति चलेगी और मैं अब लेकर चल रहा हूं। हमारे बहुत ही दिल अजीज बहुत ही प्यारे उमाशंकर गौड़ जी।
सवाल:- उमाशंकर जी आप अपने जीवन के अनुभव बताइए?
जवाब:- अनुभव के विषय में अगर बात करें तो परवाना जी अनुभव बचपन से आरंभ हो गए थे। बहुत छोटी उम्र से आरंभ हुए थे। सब कुछ हमारे नजदीक था। लेकिन हमें बातें समझ में नहीं आ रही थी कि मेरे साथ में विशेष तौर पर क्या हो रहा है क्यों हो रहा है। जीवन को बचपन से ही समझने की कोशिश करता रहा। आठवीं क्लास तक जाते-जाते महाभारत, रामायण, गीता, शिव पुराण। यह सभी ग्रंथ आठवीं क्लास तक मैं पढ़ चुका था। उसके बाद में जीवन बदल गया। पढ़ाई की वजह से स्थान छूट गया। संस्कार खत्म हो गए ,दोबारा से फिर इन संस्कारों को जागृत करने का समय आया। उसके बाद एक यात्रा आरंभ हुई कि “सत्य कैसे खोजा जाए सत्य क्या है, इसके होने का कारण क्या है ?हम कैसे पैदा हुए और जब हम पैदा हुए तो हमारा अंतिम लक्ष्य क्या है “सभी कहते थे कि भगवान अंतिम लक्ष्य हैं। भगवान को प्राप्त करना हमारा आखरी उद्देश्य है। आखरी लक्ष्य है लेकिन हम निकले तो भगवान में ही से थे। ना जब हम उन्हीं में से निकले हैं। उन्हीं को पाना हमारा आखरी लक्ष्य है तो भगवान ने हमें निकाला क्यों यह भी तो एक सवाल है। यहां पर यह सवाल खड़ा हुआ और इस सवाल के जवाब में मैं काफी साधु-संतों के पास घुमा। किंतु यह सवाल का जवाब मुझे किसी भी साधु-संत से नहीं मिला हर कोई यही कहता था कि सृष्टि का विलास रचा। इसलिए आप अलग हो गए और अब आप उन्हीं को दोबारा ढूंढो मुझे इन सभी जवाबों में कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला और ना ही कोई मुझे अभी तक संतुष्ट कर पाया मार्ग ढूंढता रहा। अब सबसे बड़े जो प्रश्न मेरे सामने थे। वह यह था कि मैं हूं कौन जब तक यह नहीं पता होगा कि मैं हूं कौन तब तक यह नहीं पता हो सकता कि मुझे जाना कहां है।
आप उमाशंकर जी से सुन रहे हैं कि इंसान कौन है, क्या है, क्यों आया है ,इंसान का उद्देश्य क्या है ,यह तमाम बातें उमाशंकर जी ने बताई है “हे इंसान तू क्या करने आया है, तुझे क्या करना है और तू क्या कर रहा है “शायद इसी की खोज के अंदर यह सफर चल रहा है और हमारे उमाशंकर जी इसी सफर को आगे लेकर हमारे साथ चल रहे हैं जी उमाशंकर जी…
जवाब:- जी परवाना जी मैं लगभग तेरा 14 साल का था जब मेरे घर में मृत्यु हुई। उस समय वहां पर पंडित जी आए हुए थे। तो उन्होंने वहां पर गुरुड पुराण सुनाएं तो गरुड़ पुराण के अंदर जीव को बाद में यह कर्म करेगा तो फलाना नर्क में जाना पड़ेगा,उस नर्क में जाना पड़ेगा। यह सारी बातें उन्होंने बताएं इसके साथ साथ मैं उन्होंने गीता पाठ में कहा कि आत्मा अमर है, ना आत्मा को पानी मार सकता है,ना आग जला सकती है तब मैंने पंडित जी से एक प्रश्न किया कि पंडित जी यह बताइए कि मरने के बाद में तो आत्मा रह गई तो फिर कैसे आत्मा को कढ़ाई के तेल में डाला जा सकता है आत्मा को कैसे काटा जाएगा आत्मा को कैसे बिच्छू डंक मार देंगे लेकिन उस समय पंडित जी ने मेरे इस प्रश्न का जवाब नहीं दिया लेकिन यह प्रश्न मेरे जहन में था और लगातार बना रहा अब इस प्रश्न को अपने अंदर मुझे लिए हुए 20 साल से ज्यादा हो गए तो यह लोग डाउन के समय पर मनन और चिंतन करने का समय मिला तू यह सबसे पहला प्रश्न दिमाग में आया कि मैं हूं कौन कि जिसे नर्क किया स्वर्ग की आवश्यकता पड़ती है या यह केवल एक विचार है तब यह बात समझ में आई।
दोस्तों अभी हम गोहाना पहुंच गए हैं बातचीत करते करते और यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा तो जी उमाशंकर जी बताइए?
जवाब:- तो इस बात को ढूंढते ढूंढते हैं चिंतन मन मंथन किया उसके बाद एक बात समझ में आई दो ही चीजें समझाई जाती हैं कोई भी व्यक्ति है वह दो ही चीज आपको समझाता है हम शरीर नहीं है आत्मा है जबकि पूर्ण सत्य नहीं हो सकता कि हम केवल आत्मा है तो आत्मा जलाई जाएगी नहीं गलाई जाएगी नहीं तो फिर हम भोग कैसे भोंगते हैं और यह अगर शरीर का तत्व है तो सिर्फ समाप्त होने के साथ ही हमारे भोग खत्म हो जाने चाहिए कर्म खत्म हो जाना चाहिए इसका मतलब तो यह हुआ कि इन दोनों के बीच में कोई न कोई चीज ऐसी है अलग जिसके बारे में हमें नहीं बताया जाता कि वह चीज है क्या वह कैसे काम करती है इस बात के द्वारा आप समझ गए कि घर में हमारी छत पर पंखा लगा होता है हमें यह पता है कि जब बिजली आएगी और हम इसका बटन दब आएंगे तब यह पंखा चलेगा तब हमें हवा लगेगी हम बिजली को नहीं देख पा रहे हैं लेकिन हम पंखे की बाहर की स्तर को देखते हैं उस पंखे और बिजली के बीच में एक चीज जरूर है वह मोटर जो उसे रोटेट करती है जो उसे घूम आती है जिसके विषय में हमें नहीं बताया जाता हमें सीधा यही कहा जाता है कि पंखा जो है कि वह बिजली से ही चलेगा और यही हमें कहा जाता है कि जीवन आत्मा से चलता है और यह आत्मा से चल रहा है शरीर और आत्मा के बीच में जो चीज है जो सिर्फ भोग रहा है जो कर रहा है जोहर स्वर्ग और नर्क की प्राप्ति कर रहा है वह कौन है उसके बारे में जाना नितांत आवश्यक है दोस्तों जब तक उसके विषय में नहीं जानोगे तब तक आत्म तत्व को नहीं जान पाओगे।
हमारी ज्योतिष के अंदर इसका बहुत सुंदर निर्णय लिया गया था लेकिन उसके ऊपर किसी ने ध्यान नहीं दिया हम जब अपने ज्योतिष के अंदर गुण मिलाते हैं तो हमें उसमें शब्द आता है योनि वह योनि मिलाई जाती है और विपरीत योनि होने पर विवाह नहीं किया जाता हर जीव की योनि होती है। योनि में जाने के बाद जो जीव के अंदर जाकर अहंकार उत्पन्न हुआ था जहां से आत्मा से जियो का निर्माण हुआ और वह जो जीवन अनंत यात्रा कर रहा है वह जीव ही भोक्ता है आत्मा शरीर भोक्ता है दोस्तों जानने की जरूरत यह है कि हम जीव हैं आत्मा हम से आकर मिलती है और शरीर पंचतत्व से मिलकर के तब यह तीनों चीजें मिलकर के एक सृष्टि का विनाश होता है केवल आत्मा और पंच तत्वों से मिलकर सृष्टि का विलास नहीं हो सकता जिसमें यह जान जाएंगे कि जीव बनते कैसे हैं जीव के बनने का एक ही कारण है अहंकार तत्व अहंकार जब आ जाता है तो मैं कौन हूं मेरा हूं ना यह एक तरह की ऊर्जा को जन्म देता है वह ऊर्जा हमारी संकल्प शक्ति होती हैं संकल्प शक्ति से जिसे हम और आप बोलते हैं उस तरह के शक्ति से उर्जा उत्पन्न होती है जो जीव के रूप में परिणित होती जाती है उसी में जन्म जन्मांतर के कर्म स्टोरेज होते हैं इकट्ठे होते हैं केवल हमारे नहीं जो हमारे चारों तरफ होते हैं उनका असर भी उसी ऊर्जा में संगठित हो जाता है जिससे कि हमारे भविष्य का निर्धारण होता है कि हम आने वाला जन्म कहां लेंगे किस तरह के व्यक्तियों के बीच में लेंगे यह सब ऊर्जा के क्षेत्र में उसके स्तर पर ही होता है इसी से भूत प्रेत और अन्य युवा बनती है और यह सब ऊर्जा का खेल है नेगेटिव और पॉजिटिव हो जा सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा हम आत्मा को बिल्कुल सर्वत्र मानते हैं और सर्वत्र है आत्मा कोई स्थान ऐसा नहीं है जहां आत्मा ना हो और हम जीव से बने हुए हैं हमारे शरीर पंचतत्व का हम जीव आत्मा परमात्मा का तत्व इन चीजों से सृष्टि का विलास होता है
बहुत बेहतरीन तरीके से हमारे दर्शकों को यह जानकारी 20 तथा और एसएसटी के के बीच में हमारे जीवन का आना इसका सफरनामा उमाशंकर जी ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से बताया आपको बता दें कि उमाशंकर जी ज्योतिष विषय के विशेषज्ञ भी है और आप कभी भी इनसे अपने भविष्य के बारे में भी जान पाएंगे और हम चर्चा करेंगे फिर दोबारा आज का जो विषय है वह इन्होंने पूरा किया और मैं चाहूंगा कि 2 पंक्तियां इस पूरे विषय का जो निचोड़ है वह सिर्फ 2 पंक्तियों में हमारे पाठकों को हमारे दर्शकों को जरूर बताएं।
निष्कर्ष:-इसका उपसंहार केवल इतना है हमें अपने जीव को छोड़कर आत्म तत्व पर विराजमान होना है यही हमारे जीवन का लक्ष्य है हमारे जीवन के उत्पन्न होने का कारण यही है कि हम अपने आप को जाने जिस समय हम यह जान जाएंगे हम जियो हैं उस जी उसे ही हमें ब्रहम होना है तब यह बात साफ हो जाएगी अहम् ब्रह्मास्मि जो कहा गया है हमारे शास्त्रों में और उपनिषदों में जो बातें कही गई हैं जिस जो वेद इस बात को कहते हैं उस बात पर हमें अंततः जाना पड़ेगा इस जन्म में या किसी और जन्म में यह गति रोकने पड़ेगी जब तक यह गति नहीं रुकती है तब तक हम मुक्त नहीं हो सकते है।
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