पर्यूषण महापर्व: आत्मा की शुद्धि और सुधार का मार्गदर्शक: डॉ श्री मणिभद्र मुनि जी महाराज

उन्होंने यह भी कहा कि जीवन की कठिनाइयों का कारण भाग्य को मानना और अपने प्रयासों की कमी को नजरअंदाज करना गलत है। पर्यूषण महापर्व हमें पुरषार्थ (संघर्ष और प्रयास) के महत्व की याद दिलाता है।

Title and between image Ad

सोनीपत, (अजीत कुमार): नेपाल केसरी, राष्ट्र संत, मानव मिलन के संस्थापक जैन मुनि डॉ मणिभद्र मुनि जी महाराज ने पर्यूषण महापर्व को आत्मा की शुद्धि और पवित्रता की दिशा में अग्रसर करने वाला महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर बताया। उन्होंने कहा कि यह पर्व आत्म-समर्पण, तपस्या, और साधना का एक अनमोल अवसर है। पर्यूषण का अर्थ अत्यंत संयम है, जो आत्मा के भीतर गहरी शांति और शुद्धता प्राप्त करने का मार्गदर्शन करता है।

सोमवार को सेक्टर 15 स्थित जैन स्थानक में चातुर्मास के दौरान पर्युषण महापर्व पर भक्त जनों को संबोधित करते हुए, डॉ मणिभद्र मुनि जी ने कहा कि हमारी आत्मा और भाग्य हमारे कर्मों पर निर्भर करते हैं। पर्यूषण महापर्व सिखाता है कि भाग्य कर्मों का परिणाम है, और अच्छे कर्म करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। यह पर्व आत्म-निरीक्षण, कर्मों के मूल्यांकन और अच्छे कर्मों के संकल्प का अवसर प्रदान करता है।

उन्होंने यह भी कहा कि जीवन की कठिनाइयों का कारण भाग्य को मानना और अपने प्रयासों की कमी को नजरअंदाज करना गलत है। पर्यूषण महापर्व हमें पुरषार्थ (संघर्ष और प्रयास) के महत्व की याद दिलाता है। इस पर्व के दौरान, लोग साधना, तपस्या, और उपवास के माध्यम से आत्मा की शुद्धि का प्रयास करते हैं। आत्मा की शुद्धि से जीवन में शांति और सकारात्मक बदलाव आते हैं।

अंततः, पर्यूषण महापर्व आत्म-निरीक्षण, सुधार, और अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें सच्चे सुख और शांति की ओर ले जाता है, जिससे हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। अपने आचरण, विचार, और भावनाओं की जांच करते हैं। आत्मा की शुद्धता से जीवन में एक नया दृष्टिकोण और शांति प्राप्त होती है, जो हमें अपने दैनिक जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करती है।

Connect with us on social media

Comments are closed.