गुप्ति सागर जी महाराज : समदृष्टि सम्यग्दृष्टि को प्राप्त हो
आज का समय बहुत ही खास था महाराज श्री गुप्ति सागर जी गुप्तिधाम में विराजमान है यहां इस वक्त समय पौने आठ बजे है प्रात:काल का समय है यह मेरी वार्ता 20 जून 2004 की है हम समदृष्टि के अलग-अलग दृष्टिकोण पर चर्चा करेंगे मैने लंबी सूची अपने प्रश्नो की बनाई हुई है।
आज का समय बहुत ही खास था महाराज श्री गुप्ति सागर जी गुप्तिधाम में विराजमान है यहां इस वक्त समय पौने आठ बजे है प्रात:काल का समय है यह मेरी वार्ता 20 जून 2004 की है हम समदृष्टि के अलग-अलग दृष्टिकोण पर चर्चा करेंगे मैने लंबी सूची अपने प्रश्नो की बनाई हुई है। तो आइए बात शुरु करते हैं और आप भी इसका आनंद लीजिए कुछ समय के लिए चिंता छोड़ इस अध्यात्म चिंतन में शामिल हो जाएं। यकीनन आपको शांति मिलेगी।
सवाल- दृष्टि व समदृष्टि में श्रेष्ठ कौन सी है?
जवाब- दृष्टि प्रत्येक मनुष्य जीव को प्राप्त होती है परन्तु समदृष्टि सम्यग्दृष्टि को प्राप्त होती है। इसलिए समदृष्टि श्रेष्ठ है।
सवाल- समदृष्टि की आवश्यकता क्यों है?
जवाब- समदृष्टि के द्वारा ही मनुष्य अंतरमुखी होता है समदृष्टि के मायने झोंपड़ी और भवन में समानता, मिट्टी और स्वर्ण में, शत्रू-मित्र में समानता रखना है। इसे यूं समझिए और विपरित तत्व से प्रेरित न होकर तटों के बीच बहने वाली स्थिति है।
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सवाल- समदृष्टि का समाज पर क्या प्रभाव है?
जवाब- समदृष्टि से ही समाज का विकास है, क्योंकि एक से प्यार दूसरे से घृणा करने वाला व्यक्ति कभी समाज का उत्थान नहीं कर सकता है। दृष्टि सौम्यता ही समाज के सुन्दर ढ़ांचे को बना सकती है।
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सवाल- संत और समदृष्टि में कितनी समानता है?
जवाब- संत और समदृष्टि दोनों पर्यायवाची शब्द हैं। जहां संत है वहां समदृष्टि है और जहां समदृष्टि है वहां समत्व जीवित है।
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सवाल- समदृष्टि अपनाने वाले को क्या कभी नुकसान भी हो सकता है?
जवाब- समदृष्टि अपनाने वाले को कभी भी नुकसान नहीं होता, यह स्पष्ट है कि समदृष्टि ही जीवन का लक्ष्य है। आत्मविश्वास के साथ यह स्वीकारें कि आत्म विकास के लिए समदृष्टि सार्थक सिद्घ होती है।
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सवाल- समदृष्टि अपनाने वाले संत ही होतें हैं ऐसा क्यों है?
जवाब- गृहस्थ जीवन में मनुष्य किसी न किसी बंधन में बंधा होता है इसलिए वह समदृष्टि नहीं रख पाता। समदृष्टि होने के लिए एक ही आंख से देखना और बरतना होगा जो गृहस्थ में कई बार यह संभव नहीं है। संत शाश्वत सत्य से जुड़ कर समदृष्टा हो जाते हैं इसलिए इनके लिए यह संभव है।
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सवाल- परमात्मा ने सबको दो दृष्टि दी फिर समाज के लिए समदृष्टि की जरुरत क्यों है?
जवाब- परमात्मा निष्पक्ष होने के कारण किसी को, किसी प्रकार की समस्या का शिकार नहीं बनाता वरन मनुष्य अपने-अपने पुण्य-पाप के अनुसार जीवन का विकास अथवा विनाश स्वयं करता है।
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सवाल- सबको एक दृष्टि सेे देखना कैसे संभव है जबकि रिश्ते अलग-अलग हैंै?
जवाब- अध्यात्म के क्षेत्र में कोई रिश्ते नहीं हुआ करते और व्यवहारिक जीवन में मनुष्य जब जीवन व्यतीत करता है तो उसे अपनी दृष्टि को विराट बनाकर चलना होगा, क्योंकि छोटी दृष्टि से विश्व के प्राणी को वह समान दृष्टि से नहीं देख सकता है।
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सवाल- समदृष्टि में एक रुपता है जबकि संसार में विभिन्नता है फिर एक नजऱ से देखना कैसे संभव है?
जवाब- समदृष्टि के मायने अध्यात्म है। संतति मनुष्य के भीतर प्रकट होती है इसका संसार से कोई लेना देना संसार के विभिन्न रुप हैं जबकि मोक्ष का एक ही रुप है।
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