भक्ति भाव का महाकुम्भ 76वां निरंकारी सन्त समागम: ईश्वर के प्रति समर्पित मन ही मानवता की सच्ची सेवा कर सकता है- निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
तीन दिवसीय निरंकारी सन्त समागम का भव्य शुभारम्भ कल निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा-गन्नौर हल्दाना बोर्डर स्थित मैदानों में हुआ है जिसमें देश-विदेश से लाखों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्त एवं प्रभूप्रेमी सज्जन शामिल हुए।
सोनीपत: ‘‘ईश्वर के प्रति समर्पित मन ही मानवता की सच्ची सेवा कर सकता है और एक सही मनुष्य बनकर पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी जीवन जी सकता है।’’ यह उद्गार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 28 अक्तूबर को 76वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के पहले दिन के मुख्य सत्र में उपस्थित विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।
तीन दिवसीय निरंकारी सन्त समागम का भव्य शुभारम्भ कल निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा-गन्नौर हल्दाना बोर्डर स्थित मैदानों में हुआ है जिसमें देश-विदेश से लाखों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्त एवं प्रभूप्रेमी सज्जन शामिल हुए। समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का समावेश होने से अनेकता में एकता का सुंदर नज़ारा यहां देखने को मिल रहा है।
सत्गुरु माता जी ने फरमाया कि जीवन में सेवा एवं समर्पण का भाव अपनाने से ही सुकून आ सकता है। संसार में जब मनुष्य किसी व्यवसाय के साथ जुड़ा होता है तब वहां का समर्पण किसी भय अथवा अन्य कारण से हो सकता है जिससे सुकून प्राप्त नहीं हो सकता। भक्त के जीवन का वास्तविक समर्पण तो प्रेमाभाव में स्वयं को अर्पण कर इस परमात्मा का होकर ही हो सकता है। वास्तविक रूप में ऐसा समर्पण ही मुबारक होता है।
सत्गुरु माता जी ने कहा कि किसी वस्तु विशेष, मान-सम्मान या उपाधि के प्रति जब हमारी आसक्ति जुड़ जाती है तब हमारे अंदर समर्पण भाव नहीं आ पाता है। वहीं अनासक्ति की भावना को धारण करने से हमारे अंदर पूर्ण समर्पण का भाव उत्पन्न हो जाता है। परमात्मा से नाता जुड़ने के उपरान्त आत्मा को अपने इस वास्तविक स्वरूप का बोध हो जाता है जिससे केवल वस्तु-विशेष ही नहीं अपितु अपने शरीर के प्रति भी वह अनासक्त भाव धारण करता है। सत्गुरु माता जी ने कहा कि जब हम इस कायम-दायम निराकार की पहचान करके इसके प्रेमाभाव में रहेंगे, इसे हर पल महसूस करेंगे तब हमारे जीवन में आनंद, सुकून एवं आंतरिक शांति निरंतर बनी रहेगी।
सेवादल रैली:
निरंकारी संत समागम के दूसरे दिन से सेवादल रैली में सेवा दल के भाई बहनों ने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सेवा के स्वरूपों को व्यावहारिक रूप में जागृत किया। ध्वज फहराने करने के बाद मंच पर माता सुदीक्षा जी महाराज साथ में निरंकारी राज पिता जी गद्दी आसीन हुए। मंच के ठीक ऊपर लिखा था कि सतगुरु के ज्ञान से हर पल में सुकून। सेवा दल के जवानों ने प्रार्थना की, पीटी परेड की, शारीरिक करतब दिखाएं ज्ञान वर्धक संदेश दिया कि सेवा में मर्यादा की शक्ति, सेवा का श्रंगार मर्यादा से हो। अंदर बाहर गुरमत हो, चेतन रहते सेवा करें। ब्रह्मज्ञान के बाद की गई सेवा सितारा बना देती है। पर्यावरण को शुद्ध रखना भी सेवा है। सेवा भाव सेवा का स्वभाव बन जाए। विदेशों से आये सेवादल सदस्यों को सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज आशीर्वाद प्रदान किया। सेवादल के सदस्य सत्गुरु के सामने से प्रणाम करते हुए गुजरे और अपने हृदय सम्राट सत्गुरु के प्रति सम्मान प्रकट किया।
सेवादल रैली को सम्बोधित करते हुए सत्गुरु माता जी ने कहा कि समर्पित भाव से की जाने वाली सेवा ही स्वीकार होती है। जहां कही भी सेवा की आवश्यकता हो उसके अनुसार सेवा का भाव मन में लिए हम सेवा के लिए प्रस्तुत होते हैं वही सच्ची भावना महान सेवा कहलाती है। यदि कहीं हमें लगातार एक जैसी सेवा करने का अवसर मिल भी जाता है तब हमें इसे केवल एक औपचारिकता न समझते हुए पूरी लगन से करना चाहिए क्योंकि जब हम सेवा को सेवा के भाव से करेंगे तो स्थान को महत्व शेष नहीं रह जाता। जब हम ऐसी सेवा करते हैं तो उसमें तो निश्चित रूप में उसमें मानव कल्याण का भाव निहित होता है।
इसके पूर्व सेवादल के मेंबर इंचार्ज पूज्य श्री विनोद वोहरा जी ने समस्त सेवादल की ओर से सत्गुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी का सेवादल रैली के रूप में आशिष प्रदान करने के लिए शुकराना किया।
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