धार्मिक कार्य और अपने कारोबार में तालमेल बैठाने का हुनर जानिए
हम एक ऐसे व्यक्तित्व के साथ में चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन के अंदर कामयाबी के पायदान पर कदम रखे। इन्होंने धर्म और कर्म दोनों शब्दों को व्यावहारिकता के साथ में जीवंत किया।
- सुरेश चंद जैन की यह कहानी आपके जीवन को बदल देगी
- धार्मिक कार्य और अपने कारोबार में तालमेल बैठाने का हुनर जानिए
सूत्र: मैं जो भी काम करता हूं मैं विचलित नहीं होता
हम एक ऐसे व्यक्तित्व के साथ में चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन के अंदर कामयाबी के पायदान पर कदम रखे। इन्होंने धर्म और कर्म दोनों शब्दों को व्यावहारिकता के साथ में जीवंत किया। इनका जीवन औरों के लिए प्रेरणादायक है। एक पहली स्टोरी हमने दी थी उनके 50 साल के जीवन का वह सफर जिसमें उन्होंने अपने कारोबार को एक ऊंचा मुकाम दिया। आज हम चर्चा करने जा रहे हैं सुरेश चंद जैन संघपति के नाम से विख्यात है। धार्मिक कार्यो और अपने कारोबार में कैसे तालमेल बनाएं इसके हुनर हमें बता रहे हैं।
निरंतर 26 साल से समर्पित समाज सेवा में लगे
पाठको ! हम आप को बता दें कि पांच साल का एक सफर इनके साथ रहा है और हमने इन से बातचीत करने के लिए इनकी इंडस्ट्री के अंदर जाने का निर्णय किया। एक सहज भाव के अंदर इनका कार्य करने का तरीका, इनकी सज्जनता, शालीनता, विन्रमा, स्नेह-सौहार्द भरा व्यवहार, हर पल चेहरे पर धीमी-धीमी मुस्कान चिरस्थाई रहती है यही इनके गुण हमें प्रभावित करते रहे। वही हम आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। इस बात को हम समझेंगे कि जीवन के अंदर कोई भी व्यक्ति जो यह कहता कि कारोबार के साथ हम ज्यादा धर्मिक कार्यो के लिए समय नहीं निाल पाते। लेकिन 26 साल से निरंतर यह व्यक्ति समाज की सेवा में बराबर समय दे रहा है। यही रहस्य और तरीका हम इनसे जानेंगे।
मध्यप्रदेश और राजस्थान के दो परिवारों का मिलन 1973 में हुआ
तो आइए आगे बढने से पहले थोड़ा सा सुरेश चंद जैन के जीवन को जान लेते हैं इनके पिता स्वर्गीय श्री मदन लाल जैन, माता जी स्वर्गीयश्रीमती भगवती देवी जैन के घर 10 फरवरी 1954 को इनका जन्म बरखैडा, मध्य प्रदेश में हुआ और गृहस्थ जीवन इनका विवाह 23 जून 1973 को अलवर की श्रीमती बिमला जैन के साथ हुआ। इनकी अर्धांगिनी बिमला जैन ने इनके परिवार के अंदर एक खुशहाली का माहौल दिया। बडी बिटिया कविता जैन दामाद श्री अनुराग जैन हैं। महाराज जी का प्रथम मगलं प्रवेश अप्रैल 2013 में हुआ था। इनको दो पुत्र रत्न मिलते हैं जिनके नाम संदीप जैन, मनीष जैन हैं। जिन्होंने पढ़ाई के पश्चात में इनके साथ कारोबार के अंदर हाथ बटाया, काम को संभालने का एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किया। इनके कारोबार को ऊंचाइयों प्रदान की 2000 का वह समय जब इनके साथ इनके पुत्र रतन उनके कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए इनके दाएं और बाएं हाथ बने।
जीवन के सफर में खुशियों का असर
यह व्यक्तित्व गुप्ति सागर जी महाराज के प्रति आस्थावान है उनके परम शिष्य हैं। ऐसे ओजस्वी, तेजस्वी, दिव्य पुरुष के सांनिध्य में आकर अपने धर्म के प्रति आस्था को बढ़ाते गए हैं। जो भी कार्य करते हैं यह अपने गुरु का आशीर्वाद लेकर के करते हैं। तो आइए हम इस यात्रा में सुरेश जी के साथ में चर्चा शुरू करते हैं। आप भी आनंद लीजिएगा कि किस प्रकार से जीवन का सफर खुशियों से भरपूर होता जाता है।
सकारात्मकता की शक्ति
आप इस साक्षात्कार के अंदर यह जान पाएंगे कि आप अपना कारोबार करते हुए धर्म अध्यात्म के अंदर अपना समय कैसे लगाएं। अगर यह जानना है तो हमें सुरेश चंद जैन के साथ में जो बातचीत करने का मौका मिला है इसके माध्यम से यही आपको बेहतर तरीके से दिखा पाएंगे, बता पाएंगे। तो सबसे पहला सवाल हम करने जा रहे हैं बस आप अपने दिल और दिमाग की खिड़की और दरवाजे को खोल लीजिएगा ज्ञान ज्योति दर्पण का एक संकल्प है कि सकारात्मक हर व्यक्ति को आप तक पहुंचाएंगे उसी में एक यह नाम सुरेश चंद्र जैन।
कामयाबी के कदम : सुरेश जैन बता रहे हैं कारोबार को सफल बनाने के तीन मंत्र
सवाल:- सुरेश जी संघपति का क्या मतलब है और आपको संघपति क्यों कहा जाता है इसके बारे में बताएं?
जवाब:- संघपत्ति का सबसे पहला दायित्व यह होता है कि जब महाराज जी(राष्ट्र संत उपाध्याय डा. गुप्ति सागर जी महाराज) चलते हैं जैसे मान लीजिए कि महाराज जी को 1200 से 1400 किलोमीटर चलना होता है। उसमें सारी व्यवस्था करनी होती है। साथ में जो कर्मचारी हैं, दीदी है, ब्रह्मचारी हैं, इन सब के लिए आपको हर 8 से 10 किलोमीटर पर व्यवस्था करते हुए जाना है। उसमें पूजन की व्यवस्था को देखना पड़ता है। सबसे जरूरी काम होता है कि समाज को अग्रिम सूचना देनी पड़ती है कि महाराज जी आज आपके यहां पधार रहे हैं और आप महाराज जी की सारी व्यवस्थाएं कीजिए। अगरव्यवस्था नहीं हो पाती है तो हम खुद से ही महाराज जी की सारी व्यवस्थाएं करते हैं।
सवाल:- आप जैन समाज में कब से जुड़े हैं और आपके अंदर यह सेवा भाव कब जागृत हुआ कब से आप जैन समाज के लिए सेवाएं अपनी दे रहे हैं?
जवाब:- मैं आपको बताऊं कि मेरा जो अध्ययन है वह जैन समाज के ही गुरुकुल में हुआ है जिसके अंदर मैंने 12 साल पढ़ाई की है और मैंने शास्त्री की पढ़ाई की। मैं इंटर तक पढ़ा। उस दौरान मुझे पूजा-अर्चना का जैन समाज के प्रति आस्था जागृत हुई। मुझे एक बेहतरीन अवसर मिला जैन मुनि उपाध्याय गुप्ती सागर जी महाराज के दर्शन करने का और उस दिन से मैंने अपने समाज के अंदर जोड़ना शुरु कर दिया आज मुझे 26 साल से ज्यादा हो गए जैन समाज से जुड़े हुए और 26 सालों से ही मैं जैन मुनि उपाध्याय गुप्ती सागर जी महाराज की सेवा करता हुआ आ रहा हूं।
सवाल:- आपकी महाराज जी से कब और कहां मुलाकात हुई थी?
जवाब:- हमारे (प्रीतमपुरा दिल्ली) मंदिर की व्यवस्था खराब हो रही थी वो बन नहीं पा रहा था। प्रीतमपुरा दिल्ली मंदिर निर्माण के विषय को लेकर महाराज जी से चर्चा हुई। मैंने महाराज जी से विनम्र आग्रह किया कि महाराज जी आप प्रीतमपुरा आइए जो मंदिर की व्यवस्थाएं ठीक नहीं है। आप अपना आशीर्वाद दीजिए कि वह कार्य पूरा हो, व्यवस्था सुनिश्चित हो, उसके बाद महाराज जी के आशीर्वाद से पंचकल्याणक हुआ। जैन मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। तब से और ज्यादा आस्था बढती चली गई। महाराज जी के प्रति, जैन समाज के प्रति, क्योंकि पंचकल्याणक मंदिर का निर्माण महाराज जी के हाथों होना और भगवान की प्रतिष्ठा वाला मंत्र देना यह हमारा परम सौभाग्य था।
सवाल:- आपको गुप्ति सागर जी महाराज की कौन सी बातें सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं?
जवाब:- (मुस्कुराते हुए) गुप्ति सागर जी महाराज की तो सभी बातें हमें बहुत अच्छी लगती हैं परंतु क्या है कि जो उनकी दिनचर्या है। विद्यासागर जी गुरु जी की जैसी दिनचर्या है। हम बहुत ही सौभाग्यशाली हैं जो विद्यासागर गुरु जी के परम शिष्य उपाध्याय गुप्ती सागर जी महाराज का हमें सांनिध्य प्राप्त हुआ है।
सवाल:- गुप्ति सागर जी महाराज का ऐसा कोई संस्कार बताइए जिससे आपके जीवन में बड़ा बदलाव आया हो?
जवाब:- जब मैं महाराज जी को बावन गजा से दिल्ली से गन्नौर तक महाराज जी को ले गया जो जीवन में बदलाव आया है। बावन गजा से लेकर दिल्ली तक में महाराज जी के साथ 6 महीने तक साथ रहा तो मुझे लगा कि हम तो बेकार में विचरण कर रहे हैं। परिवार के अंदर चिंता करते हैं, कि हमें यह करना है, महाराज जी के साथ संपर्क रखने का सबसे बड़ा फायदा मुझे यह हुआ कि मुझे ऐसा लगता था कि महाराज जी का सदैव हाथ उनका आशीर्वाद मेरे साथ है।
सवाल:- कोई ऐसा क्षण आपके जीवन में यह आपकी फैक्ट्री में आपको महाराज जी का सांनिध्य प्राप्त हुआ हो, महाराज जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ हो, ऐसी कोई बात है याद आती हो तो बताइए हमारे पाठकों के साथ में सांझा कीजिए?
जवाब:- जब से मैं जुड़ा हूं महाराज जी से 26 साल हो गए हैं आज तक मैंने कोई भी काम महाराज जी के आशीर्वाद के बिना नहीं किया है। कोई भी काम करना होता है तो महाराज जी से पहले उसके ऊपर आशीर्वाद लिया जाता है। उनकी सलाह ली जाती है, उनका मार्गदर्शन लिया जाता है। फिर हम उस काम को शुरू करते हैं। हमने चाहे मशीनें मंगाई हों, चाहे मैंने कोई फैक्ट्री लगाई है, चाहे मैंने कोई मकान बनाया है, हमेशा गुरुदेव का आशीर्वाद लेकर, गुरुदेव का मंगल प्रवेश करवा करके परिवार को आशीर्वाद दिला कर काम को शुरुआत किया है। इसका मुझे सबसे ज्यादा लाभ यह हुआ कि महाराज जी अपना आशीर्वाद मुझे देते रहे। हम आगे प्रगति करते रहे। उनका सांनिध्य प्राप्त होता रहा, मार्गदर्शन मिलता रहा। आज जो आप इतना बड़ा कारोबार देख रहे हैं। यह महाराज जी की कृपा है। उन्हीं का आशीर्वाद है। सारे परिवार के अंदर सुख-शांति है, खुशहाली है, गुरुदेव उपाध्याय गुिप्त सागर जी महाराज का आशीर्वाद है।
सवाल:- वह क्या घटना थी जैन साहब कि नोएडा में अपने एक प्लॉट लिया था फिर आप महाराज जी के पास आशीर्वाद लेने के लिए गए तो वह क्या वाक्य था उसके बारे में बताएंगे?
जवाब:- गुरुदेव हमेशा चाहते थे कि हम गन्नौर से दूर ना जाएं क्योंकि गुरुदेव की यही इच्छा रहती थी कि हम नोएडा जाएंगे तो दूर हो जाएंगे परिवार दूर हो जाएगा। आप आएंगे, जाएंगे। सब महाराज जी ने मुझे एक सलाह दी कि आप दिल्ली-गन्नौर हाईवे पर अपनी फैक्ट्री लगाएं। महाराज जी के आशीर्वाद से मैंने 6 महीने के अंदर ही जगह ढूंढ ली और 6 महीने के बाद ही मेरी फैक्ट्री बननी शुरू हो गई। आज मैं नाथूपुर में जैन इलेक्ट्रो प्लास्टिक प्राइवेट लिमिटेड फैक्ट्री चला रहा हूं। यह सब गुरुदेव का आशीर्वाद है।
सवाल:- सबसे पहले कब आए थे महाराज जी आपके यहां?
जवाब:- गुरुदेव यहां पर सबसे पहले 9 जून 2015 को आए थे 5 साल पहले आए थे उनका पूरा आशीर्वाद मिला हमें।
सवाल:- उस समय यहां की स्थिति कैसी थी और अब इस दौरान क्या यहां पर बदलाव आया है?
जवाब:- (मुस्कुराते हुए) गुरुदेव का इतना आशीर्वाद है। यकीन मानिए आज मेरे पास जगह नहीं है यह फैक्ट्री इतनी बड़ी बन गई है। इतना बड़ा कारोबार है यहां जो भी काम कर रहा है। वह भी प्रसन्न है। यकीन मानिएगा। आपको यह बता दूं कि मेरे पास ऐसे ऐसे कारीगर भी हैं, ऐसे कर्मचारी हैं जो मेरे पास 20 साल से काम कर रहे हैं। इसमें महाराज जी का भरपूर आशीर्वाद मेरे ऊपर है। मैं जो भी काम करता हूं। मैं विचलित नहीं होता। और मैं अच्छी तरह काम करता हूं।
सवाल:- जैन धर्म की कुछ महत्वपूर्ण शिक्षा बता दीजिए ताकि हमारे पाठकों को भी इसके बारे में जानकारी हो सके?
जवाब:- जैन धर्म में तीन रत्न, जिसे रत्नत्रय भी कहते हैं, को सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनमें से किसी का भी अन्य दो के बिना अलग से अस्तित्व नहीं हो सकता है तथा आध्यात्मिक मुक्ति या मोक्ष के लिए तीनों आवश्यक सम्यक दर्शन- सब तत्वों में अंतर्दृष्टि- जीव, अजीव, आस्रव, कर्म बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। सम्यक ज्ञान- वास्तविक विवेक। सम्यक चारित्र-दोष रहित और पवित्र आचरण। इसके दो रूप हैं- श्रावकाचार- ये गृहस्थों के लिए है। श्रमणाचार- ये मुनियों के लिए है। दोनों का लक्ष्य एक है- अहिंसा का पालन। जैन धर्म में प्रचलित इस शब्द का प्रयोग हिन्दी साहित्य में किया गया है ।
सवाल:- आखिर में आप दो लाइनों में युवा पीढ़ी के लिए समाज के लोगों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे जिससे उनके जीवन में बेहतर बदलाव आ सके?
जवाब:- मैं सबसे पहले यही कहूंगा कि भगवान और गुरुदेव यह दो हैं लेकिन अपने माता पिता की सेवा जरूर करें क्योंकि माता-पिता से बड़ा कोई भगवान, कोई धर्म नहीं होता। उसके बाद अपने गुरुजनों की पूजा करें। भगवान की पूजा करें। अभिषेक जितना आप करेंगे। जैन समाज में आपको लाभ होगा। हां मैं अपने जैन धर्म के लोगों को एक खास अनुरोध करना चाहूंगा कि आप सुबह अभिषेक जरूर करें। मैं परम श्रद्धेय उपाध्याय गुप्ति सागर जी महाराज के चरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूं। आपका और ज्ञान ज्योति दर्पण का बहुत-बहुत शुक्रिया।
निष्कर्ष: जैन धर्म के सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र के रूप में मान्यता प्राप्त है, यकीनन यह जीवन संवारते हैं निखारते हैं।
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