डॉ. ज्योति माने से जानिये: कैसे रत्नों के नाम पर आपके साथ होता है धोखा

आज की आधुनिक संस्कृती को मानने वाला सभ्य समाज इस बात पर विश्वास ही नहीं करता कि रत्नों में कोई प्रभावशाली शक्ति होती है। रत्न केवल एक प्रकार के पत्थर ही तो है और भला इन पत्थरों से इन्सान का भाग्य कैसे बदल सकता है?

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मुंबई/जीजेडी न्यूज: यह उस समय के प्राचीन ग्रंथों में लिखा गया है। आज भी जापान जैसे प्रगत देशों में कैल्शियम की गोलियाँ मोती के पावडर से बनाई जाती हैं। रत्नों में दैवी शक्ति होती है। ऐसी मान्यता कारण रत्न को राशि के अनुसार धारण किया जाने लगा और मानव की रक्षा तथा सफलता के लिये रत्न के अनुसार उसकी राशि निश्चित की गई। विशिष्ट ग्रह का रत्न निश्चित किया गया और विशिष्ट रत्न को विज्ञान की प्रगती के साथ साथ समय के अनुसार बदला भी गया। इसको और सुलभ करने के लिये जन्ममास के अनुसार रत्न चुने गये। आज भी अनेक राष्ट्रों ने अपनी सीमा में प्राप्त होने वाले रत्न को अपना राष्ट्रीय रत्न बनाया है और रत्न के रंग के अनुसार राष्ट्रीय निशान बनाया है। आज के आधुनिक विज्ञान के जमाने में भी रत्नों को धार्मिक स्थान प्राप्त है। महान साधू – पंडित,ओके गले में रत्नों की चार मालाये होती थी। पोप- बिशप आदि महान लोग रत्न धारण करते हैं। हर गिरीजाघर में कोई न कोई रत्न की वस्तु पाई जाती है। फिलहाल आज के कई लोग इसे पुराने खयाल से न देखते हुए अपनी अपार संपत्ति को छोटे रूप में छुपाकर सुरक्षित रखने का एक आसान और अतिलाभदायक साधन समझते हैं। क्योंकि रत्नों को हजारो साल रखने पर भी न तो वे खराब होते हैं न उनका मूल्य कम होता है। किंतु समय के साथ उनका मूल्य बढ़ता ही रहता है और संपत्तिमें वृद्धि भी होती है ।

आज की आधुनिक संस्कृती को मानने वाला सभ्य समाज इस बात पर विश्वास ही नहीं करता कि रत्नों में कोई प्रभावशाली शक्ति होती है। रत्न केवल एक प्रकार के पत्थर ही तो है और भला इन पत्थरों से इन्सान का भाग्य कैसे बदल सकता है? क्या इन निर्जीव पत्थरों में भाग्य को बदलने की शक्ति होती है? ऐसी अनेक प्रकार की शंका – आशंकाये रत्नों पर से आजकल लोगों का मनुष्य के दिमाग में उत्पन्न होती है। विश्वास उठ जाने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि कुछ स्वार्थी और मतलबी लोग अखबार में रत्नों के संबंधित विचित्र प्रकार के झूठे विज्ञापन देकर लोगों की दिशाभूल करते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं।

उदाहरण स्वरूप बोलता पत्थर, जो मांगो वह मिलेगा, जीवन से निराश न हो, जादुई नवरत्न अंगुठी, तिलस्मी तावीज, इसके धारण करने से एक ही दिनमें  धनवान बनो। परीक्षा में अव्वल दर्जे में उत्तीर्ण हो जाओ। लॉटरी में पहिला इनाम मिलेगा। जुवे में जीत होगी। बेकार को नौकरी मिलेगी। जिस के बारे में विचार करो वह सात समंदर पार करके आपके मिलने की आतुरता में व्याकुल होकर दौडी चली आयेगी आदि। कैसे कैसे अजीब से विज्ञापन हर रोज अखबार में पढने में आते हैं और हालात के मारे कुछ भोले भाले लोग अंधविश्वास करके इनके जाल में करते हैं। अकीक जैसा अति अल्पमोली पत्थर जिसका दाम आजकल सिर्फ पच्चीस पैसे होता है, उसे इक्कीस यां इक्यावन रुपये की व्ही.पी. से भेजा जाता है। नवरत्न की अंगुठी में भी ऐसे उपरत्न जडे जाते हैं, जिनका बाजार में कोई मूल्य नहीं होता। यह एक विज्ञापन द्वारा जनता को लूटने का धंदा है। आज के वैज्ञानिक युग में मानव कहां से कहां तक प्रगती के शिखरपर पहुँचा है। फिर भी कुछ अंध श्रद्धालू लोग ऐसे विज्ञापनों के बहकावे में आकर ठगे जाते हैं।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि रत्नों में प्रभावशक्ती है। यह बात आज विज्ञान द्वारा सिद्ध हो चुकी है। बड़े बड़े महान शास्त्रज्ञ भी इस बात से इन्कार नहीं करते। शास्त्र कभी झूठा नहीं हो सकता। परंतु शास्त्र का आधार लेकर लोगोंको बहकाने वाले झूठे होते हैं। रत्नों का प्रभाव मानव शरीर पर होता है, इस बात में कोई संदेह नहीं। आजकल कुछ पाखंडी धोखेबाज और ढोंगी फकीर साधू जो अपने आपको महात्मा कहलाते है और कुछ मतलबी और स्वार्थी ज्योतिषी भी ऐसे हैं जिन्हे, हकिकत में ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान बहुत ही कम होता है। ऐसे लोग हालात से पीडित अज्ञान लोगों को अपनी बातों के मायाजाल में फंसाकर ऐसे मामूली पत्थर उंची कीमत लेकर बेचते हैं। जिनका बाजार में न कोई मूल्य होता है न उनमें कोई प्रभावशक्ती होती हैं। कुछ दुकानदार, जौहरी लोग पुखराज के बदले यलो सफायर (पीले रंगका नीलम) तथा नीलम के बदले आयोलाईट (काकानीली) लहसुनिया के नाम से गोदंता या मूनस्टोन और माणिक का नाम देकर स्पायनल आदि उपरत्नों को असली महारत्न कहकर बेचते हैं।

ऐसी स्थितीमें जिस व्यक्तिको पुखराज रत्न धारण करना जरूरी हो, उसेयलो सफायर (पीतनीलम) दिया जाये तो उस व्यक्तीपर उस रत्नका विपरित प्रभाव होगा  पुखराजके धोखेमें उसे यलो सफायर पहना जाये, तो प्रभाव नीलम का ही होगा और उस व्यक्तिको लाभके बजाय हानी पहुँचेगी। क्योंकि पुखराज उष्ण प्रकृती का होता है , तो नीलम शीत प्रकृती का। पुखराज के और नीलम के गुणधर्म विभिन्न है। इसलिये रत्न खरीदते समय ध्यान रखना जरुरी है। बहुत से जौहरी दुकानदार को भी असली पुखराज (ओरियंटल टोपाझ) और ( नीलम ) यलो टोपाज के फर्क का ज्ञान नहीं होता। इसलिये जौहरी भी यलो टोपाज़ को पुखराज समझकर खरीदते हैं और पुखराज कहकर बेचते हैं। इसलिये रत्न खरीदते समय जानकार जौहरी से ही रत्न लेना उचित है।
इसी से आगे जुड़ी बाते आगे चर्चा करेंगे।

जय मां दुर्गे

यह पढ़ें डॉ. ज्योति माने से जानिये: रत्न अध्याय

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