अलविदा रतन टाटा: भारत के कोहिनूर रतन टाटा का 86 वर्ष की आयु में निधन; उद्योग जगत ने खोया अपना सितारा
28 दिसंबर, 1937 को मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में जन्मे रतन टाटा ने टाटा समूह को न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रतिष्ठा दिलाई। उन्होंने टाटा समूह का चेयरमैन रहते हुए वैश्विक कंपनियों का अधिग्रहण कर भारत की पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किया।
मुंबई, (अजीत कुमार): दुनिया भर में मशहूर उद्योगपति और टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। रतन टाटा केवल उद्योग जगत में अपनी अद्वितीय सफलता के लिए ही नहीं, बल्कि अपने महान व्यक्तित्व और समाजसेवा के लिए भी जाने जाते थे। जब भी भारत के सबसे सफल उद्यमियों की बात होती है, रतन टाटा का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वे भारतीय उद्योग जगत के लिए एक सच्चे प्रेरणास्त्रोत रहे हैं।
भारतीय उद्योग को दी वैश्विक पहचान
28 दिसंबर, 1937 को मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में जन्मे रतन टाटा ने टाटा समूह को न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रतिष्ठा दिलाई। उन्होंने टाटा समूह का चेयरमैन रहते हुए वैश्विक कंपनियों का अधिग्रहण कर भारत की पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किया।
1991 से 2012 तक टाटा समूह की अगुवाई
रतन टाटा 1991 से 2012 तक टाटा समूह के अध्यक्ष रहे। इस दौरान टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी कंपनियों ने अभूतपूर्व प्रगति की। उनके नेतृत्व में समूह का राजस्व 40 गुना और लाभ 50 गुना से अधिक बढ़ा।
पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित
रतन टाटा को देश के सर्वोच्च सम्मानों में से एक, पद्म विभूषण (2008) और पद्म भूषण (2000), से नवाजा गया। उन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने के साथ-साथ समाज सेवा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
महामारी में दरियादिली की मिसाल
रतन टाटा हमेशा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते रहे। कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने पीएम केयर फंड में 500 करोड़ रुपये का योगदान दिया। उनकी परोपकार की भावना उन्हें समाज में हमेशा एक विशेष स्थान दिलाती रहेगी।
उनके निधन से देश ने एक महान उद्योगपति और मानवतावादी को खो दिया है।
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