कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: एक कवि की दास्तान
यूं ही मैं नहीं कवि बन जाता हूं..... आंतरिक मन मे कल्पना जब उठती है !
एक कवि की दास्तान
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यूं ही मैं नहीं कवि बन जाता हूं…..
आंतरिक मन मे कल्पना जब उठती है !
समंदर की गहराई में डूब जाता हूं !!
तब मैं कवी बन जाता हूं !!
सौ शब्दों को जब एक धागे से पिरोता हूं !
तब एक आदर्श कविता बन जाती है !
सौ कविता जब कलम से लिख पाता हूं !
तब मैं कवि बन जाता हूं!
यूं ही मैं नहीं कवि बन जाता हूं….
यूं तो मैं साधारण मानव हूं !
साधारण जीवन जीता हूं!
जब लिखने बैठता हूं कविता !
रातों की तन्हाई में खो जाता हूं!!
आंतरिक मन की गहराई में !
जब गोता में लगाता हूं !!
खजाना अजब पाता हूं!
हीरे मोती माणिक पन्ना देख मै चकराता हू!!
यूं ही मैं नहीं कवि बन जाता हूं…….
आंतरिक मन में कल्पना जब उठती है !
समंदर की गहराई में डूब जाता हूं
तब मैं कवि बन जाता हूं!!
हीरा, मोती, माणिक, पन्ना को!
जब मैं शब्दों की श्रुंखला में लाता!!
सुई धागे में उन्हें पिरोता हूं !
तब एक आदर्श कविता बन जाती है !!
कभी-कभी मैं एकांतवास हेतु !
पर्वतों की श्रृंखला में चला जाता हूं !!
पक्षियों की बोली किलबिल !
मैं स्वयं खो जाता हूं !!
नदी नालों की बोली कल कल !
मे स्वयंम खो जाता हूं !!
तब मैं ईन रमणीय स्थलों की !
कविता लिख पाता हूं मैं !!
यूं ही मैं नहीं कवि बन जाता हूं….
आंतरिक मन में कल्पना जब उठती है!
समंदर की गहराई में डूब जाता हू
तब मैं कवि बन जाता हूं !
कभी-कभी मैं आकाश मे
आंतरिक मन द्वारा गरुड झेप लेता हूं
तब मैं खुद को शुन्य प्रवास में पाता हूं
वायु तत्व से दोस्ताना बनालेता हू़ँ*
तब मैं खुद को हल्का-हल्का पाता हूं !
जब मैं आकाश तले अनुभवों को!
शब्दों की श्रृंखला में लाता हूं!!
तब एक आदर्श कविता लिख पाता हूं!
यूं ही मैं नहीं कवि बन जाता हूं…
आंतरिक मन में कल्पना जब उठती है !
समंदर की गहराई में डूब जाता हूं
तब मैं कवि बन जाता हूँ!!
जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
पैत्रिक गांव
खौड जिला पाली राजस्थान
मो: 9421215933
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