कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: विजेता के पाच गुण (पार्ट 2)
जिज्ञासा वह गुण है जो एक मे अनेक को ढूढ़ता है। एक रहस्य समझ मे आ जाए तो ओर कुछ समझने की चाहत ही जिज्ञासा का स्वरुप है।
सातारा/मुंबई/जीजेडी न्यूज: विजय होने के लिए समाज मे “विजय भव:” तो आपने बुजर्गो को कई बार कहते हुए सुना होगा। अब विजेता के पास जो पाच गुण होना आवश्यक होते है, उन पाच गुणो को सविस्तार से समझना होगा। यह पाच गुण निम्न लिखित है।
1) जिज्ञासा=
जिज्ञासा वह गुण है जो एक मे अनेक को ढूढ़ता है। एक रहस्य समझ मे आ जाए तो ओर कुछ समझने की चाहत ही जिज्ञासा का स्वरुप है। जो इंसान की चाहत को दिमाग के द्वारा एक मे अनेक ढूढ़ता रहता है वही तड़फ इंसान को जिज्ञासा को प्रोत्साहित करने मे मद्दद करती है। जिज्ञासा ही अविष्कार की जननी होती है।
2) धेर्य =
जीवन मे हर कार्य करते समय धेर्य रखना होता है। जितना धेर्य ज्यादा रखोंगे उतना ही आप सफलता के करीब पहुंच जाएंगे। मन बड़ा चंचल होता है, उस पर काबु पाना बड़ा कठिन काम होता है। धेर्य जिसने प्रगत (डव्हलाँप ) कर लिया है, तो समज लेना की आपका आगे का मार्ग सोयीस्कर हो गया है।
3)नेत्रत्व =
नेत्रत्व (लिडरशिप) को धेर्य पूर्वक हासिल करना ही सफलता की कुंजी है। शंका के शिश पगधर धेर्य पूर्वक आगे बढ़ना ही नेत्रत्व को प्राप्त करना है। नेत्रत्व प्राप्त करना ही विजय की पहली पायदान है, जहा से आगे अनेक सिढ़ीया चढ़नी होती है। नेत्रत्व को प्रगत करने के लिए आपके पास हिम्मत (डेरींग) का होना जरुरी होता है। कायरता इस काम मे रोड़े अटका सकती है। मजबूत इरादे से आगे बढ़ना ही नेत्रत्व को बढ़ावा देता है।
4)एकाग्रता =
सफलता प्राप्ति में एकाग्रता की बड़ी ही भागीदारी होती है। मन को शांत रखकर सुक्ष्म ध्यान लगाकर हर कार्य करना चाहिए।
मन मे आने वाले विचारों को शांती पूर्वक संगठित करना ही सफलता की ओर जाने का मार्ग हो सकता है। यही सफलता की कुंजी है।
5)पुरुषार्थ =
कर्म निष्ठा से वह ईमानदारी से काम के प्रति लगाव होना ही पुरुषार्थ कहलाता है। जिसको आप इंग्लिश मे स्ट्रगल करना भी कहते है।
पुरुषार्थ ही विजेता का अंतिम लक्ष्य होना चाहिये। फिर देखो कुदरत का फैसला भी आपके हक्क मे ही आयेगा।
दीर्घ काल पुरुषार्थ करने के पश्चात् जो फल मिलता है वही तो “विजय”कहलाती है।
यही तो विजेता बनने की कुंजी है
निराशा, नाकारत्मक विचारों वाले विजेता बन नही पाते है, कोसो दूर रह जाते है। निराशा, नाकारत्मक विचार छोड़ीये वह विजेता बनने की इच्छा शक्ती को बल दिजीये व परिवार वह समाज का नाम ऊंचा किजिये।
उपरोक्त पाच गुणो वाला व्यक्ति देर सबेर विजेता बन ही जाता है। इसमे तिल मात्र शंका की गुंजाईश नही होनी चाहिए।
उपर लिखे पाच गुणो को अपनाये वह मानव जीवन यात्रा मे विजेता बने, इसी आशा, आपेक्षा के साथ इन दो शब्दों को विराम…………
जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक/कवि: दलीचंद-जांगिड़ सातारा
श्री विश्वकर्मा मंदीर सातारा (महाराष्ट्र)
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