राकेश खेड़ा एडवोकेट की कलम से: संत निरंकारी समागम मानवीय गुणों का अदभुत संगम
प्रीत प्यार नम्रता का ये महासंगम इस बात को प्रमाणित करता है कि एह दुनिया के लोगों निरंकार प्रभु को जानकर वैर द्वेष व नफ़रत जैसे दुष्ट भावों को हराया जा सकता है।
लेखक: राकेश खेड़ा एडवोकेट, दिल्ली: 77 वाँ अंतर्राष्ट्रीय निरंकारी संत समागम राष्ट्रीय राजमार्ग समालखा (पानीपत) हरियाणा की धरती पर 16,17, 18, (शनि,रवि,सोम) नवम्बर माह मे सम्पन्न होने जा रहा हैं। जिसमे देश विदेश से लाखों अनुयायी भाग लेंगे। प्रीत प्यार नम्रता का ये महासंगम इस बात को प्रमाणित करता है कि एह दुनिया के लोगों निरंकार प्रभु को जानकर वैर द्वेष व नफ़रत जैसे दुष्ट भावों को हराया जा सकता है। लेकिन ये तभी संभव है जब इंसान को इस रहस्य का पता लग जाता हैं कि ये सारी कायनात एक प्रभु की रचना है। रचनहार को जानने के बाद इंसान के मन मे सारी मानवता के प्रति अपनत्व की भावना पैदा हो जाती है। जो इंसान दूसरों की ज़िंदगी लेने के दुर्भाव से ग्रसित होता है वही इंसान ज़िंदगी देने जैसे दिव्य भावों से युक्त हो जाता है। संपूर्ण अवतार वाणी की ये पंक्तियाँ ऐसे दिव्य भावों को व्यापक रूप से चरितार्थ करती है “ इक्को नूर है सभ दे अंदर नर हैं चाहे नारी है, ब्राह्मण खत्री वैश हरिजन इक दी खलकत सारी है”। इस महावाक्य को आत्मसात करते ही इंसान सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है। निरंकार रूपी परम सता के साथ जुड़कर विशाल हो जाता है। संकीर्ण सोच रूपी पिंजरे से बाहर आकर पूरे विश्व के भले की कामना करने लग जाता है। अपने पराये की भावना ख़त्म हो जाती है, जात-पात मज़हब की दीवारें जो आज समाज को खोखला कर रही है इनसे निजात मिल जाती है। आज संत निरंकारी मिशन ये पुरज़ोर प्रयास कर रहा है किसी तरीक़े इंसान इंसान के क़रीब आये, मानव-मानव का हमदर्द बने। सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज का ये दिव्य स्लोगन मानवता के रुतबे को बुलंद करता है “मानव को हो मानव प्यारा, इक दूजे का बने सहारा” आज निरंकारी मिशन ये संदेश पूरी मानवता को दे रहा है कि अगर मानव बनकर दुनिया में आये हो तो मानवीय गुणों से युक्त होकर जीवन जिये ताकि इस प्रभु द्वारा दिये गये मानव तन के साथ न्याय कर पाये ।
निरंकारी संत समागम का मुख्य आकर्षण विशाल जन समूह या सजावट नहीं बल्कि एक मानवता का अनुशासित महासंगम जिसमे उमड़ता हुआ प्यार का अथाह सागर व अनेकता में एकता का अदभुत जीवंत उदाहरण देखने को मिलता है। जहां देश विदेश के भिन्न-भिन्न प्रांतों शहरों व गाँवों से आए लोग जिनकी आपस में वेशभूषा नहीं मिलती, रहन सहन नहीं मिलता, भाषा व संस्कृति मेल नहीं खाती। विडम्बना इस बात की है कि इतनी विभिन्नताओ के होते हुए भी प्यार व मानवीय गुणों का सैलाब नज़र आता है। जिसको दुनिया के लोग देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। लेकिन दूसरी तरफ संसार की तरफ निगाह डाले तो पता चलता है कि कहीं भाषा व संस्कृति के झगड़े, कहीं ख़ान पान के झगड़े, कहीं जात पात के झगड़े, कहीं रंग भेद नस्ल के झगड़े जो पूरी मानवता को कलंकित करने में लगे है। ऐसे दुर्भावों से मानवता लहुलुहान होती चली जा रही है। आज नारा विश्व भाईचारा का दिया जा रहा है लेकिन भाई-भाई का रिश्ता कमज़ोर पड़ता जा रहा है। रिश्ते बेजान होते जा रहे है। इंसान इंसान से भयभीत हो रहा है। इंसानियत दम तोड़ती जा रही है। इंसानियत की गिरती हुई दशा पर निराश होकर एक शायर ने ये पंक्तियाँ लिखी “ बंद कर दिया साँपो को सपेरे ने ये कहकर , कि इंसान को डसने के लिये इंसान ही काफ़ी है”। युगों-युगों से गुरु पीर पैग़म्बर इंसानियत को ज़िंदा रखने के लिए प्रयास करते आ रहे है। उसी लड़ी में आज संत निरंकारी मिशन भी बरसों बरस से संत समागमों का आयोजन करके इंसानियत का संदेश देकर यह प्रयास कर रहा है कि किसी तरीक़े इंसानियत के रुतबे को बुलंद किया जाये। ताकि इंसान-इंसान के क़रीब आये व उजड़ती हुई मानवता को स्थापित किया जाये। इसीलिए विद्वान संतों ने लिखा “ संत ना होते जगत मे जल मरता संसार”।
विश्व में अमन चैन का वातावरण स्थापित करने व वैर विरोध नफ़रत की आग में जलती हुई दुनिया को बचाने के लिए आज संत निरंकारी मिशन ब्रह्मज्ञान रूपी संजीवनी बूटी देकर पूरी मानवता को ये संदेश दे रहा है कि एह दुनिया के लोगो समाज की सारी मान्यताओ को मानते हुए हुए निरंकार प्रभु को जाना जा सकता है। मिलवर्तन से रहा जा सकता है। एक दूसरे को सहन किया जा सकता है। वैर द्वेष ईर्ष्या नफ़रत को हराया जा सकता है। मानवीय गुणों से युक्त होकर जीवन जिया जा सकता है। मानवता को ज़िंदा रखा जा सकता है। इन्ही दिव्य भावनाओं का साकार स्वरूप संत निरंकारी समागम मे आये लाखों श्रद्धालुओ में देखने को मिलता है जो इस बात का जीवंत उदाहरण है कि भिन्न-भिन्न भाषा व संस्कृति से संबंध रखने वाले लोग जिनकी आपस मे ख़ान पान रहन सहन व जात पात मेल नहीं खाती। इतनी विभिन्नताओ के होते हुए भी प्यार व मिलवर्तन से रह रहे है। संत समागम रूपी महाकुंभ मे चारों तरफ़ अमन चैन व प्यार का सैलाब नज़र आता है। जिसका मूल कारण है कि संत समागम मे आये भक्तों को ये बात समझ में आ गई है कि ये कायनात एक निरंकार प्रभु की रचना है फिर झगड़ा किस बात का। जब इस बात का बोध हो जाता है फिर अपने पराये की भावना ख़त्म हो जाती है। सारा संसार ही अपना दिखाई देने लग जाता है। आज संत निरंकारी मिशन इंसान की सोच का रूपांतरण करके नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में परिवर्तित करने का प्रयास कर रहा है। यें अदभुत देन निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज पूरी मानवता को प्रदान कर रहे है जिससे विश्व का हर प्राणी अमन चैन व सुकून की ज़िंदगी जी सके।
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