कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: जीवन राह नहीं थी इतनी आसान
जीवन की राह नहीं थी इतनी आसान जीतना मैंने समझा था इसको पहिचान।
जीवन राह नहीं थी इतनी आसान
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जीवन की राह नहीं थी इतनी आसान
जीतना मैंने समझा था इसको पहिचान
ऊंची चमक रही खनिजों से भरी पहाड़ी
मेरे लिए चढ़ना नहीं था इतना आसान
ढलान थी तीव्र फिसलन तेज कमाल
रुकना नहीं था सोचे जीतना आसान
पग-पग पे कांटे बिखरे पड़े थे बैमिसाल
मार्ग में रोड़े आडे आए त्रिकोणी हजार
जीवन राह सरल न थी, नाग चाल आए मोड़ हजार
चंचल रहा सतर्क रहा, चला चकोर की चाल
स्वभाव मेरा सरल था,ओढे नम्रता की ढाल
जीवन राह के माया झाल में फस गया बारम्बार
जीवन में पग-पग धोके खाए इस तरह बै हिसाब
नफरतों से सजी हुई देखी बाजार हाट
छल प्रपंचों का था बोल – बाला अपार
मैं भोला-भाला इस कृत्य से था अनजान
दुनिया वाले बेच रहे थे नफरत का सामान
कैसे करु दोस्ती जोखिम से, सौदागरों का था बिग बझार
करु दोस्ती तो भरना पड़े मुझे रितसर लगान
नजरें झूकाकर समय के साथ चलता रहा
मेरे लिए अब थी कठिन परीक्षा की घड़ी
दिल में जब दर्द हो शंका मन में आए बार-बार
पैसों का होता है बहु-मोल इस भौतिक जगत में
दुनिया करे हर-बार सम्मान, जो आए बार-बार लोगों के काम
देखा जीवन राह को, थी नहीं इतनी आसान
जीवन राह को समझते समझते बीत गई,उम्र सारी अंतिम पड़ाव के उस पार….
जीवन राह नहीं थी इतनी आसान,
जितना मैंने पहले से सोचा था…..
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जय श्री विश्वकर्मा जी की
✍ लेखक:-दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो:-9421215933
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