कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: मन चाही मंझिल अब दूर नहीं…..

वो झिलमिल दीपक दिख रहा दूर वही तेरी मन चाही मंझिल है मेरे भाई।

Title and between image Ad

मन चाही मंझिल अब दूर नहीं…..
………………………………………….

वो झिलमिल दीपक दिख रहा दूर
वही तेरी मन चाही मंझिल है मेरे भाई
कर्म कर कष्ट दायी कठिन तू पंहुचा
अपनी मन चाही मंझिल के समीप
क्यू बैठा है थक कर मेरे भाई……

अब मत रुक भाई मंझिल नहीं है दूर
गांव गलियारा छोड़ा, छोड़ी जन्म भूमि
मात-पिता सगे सम्बन्धी छूट गये पीछे
छोड़ा मित्र परिवार तू ने भाई मेरे
प्यार – प्रेम का नाता सब छूटा तेरा
अब रह गया पीछे मिलों दूर……

सफलता की घड़ी अब आई समीप
अब क्यू थककर बैठा है मेरे भाई…..
वो देख झिलमिल प्रकाश दिख रहा है
वही तेरी प्रगति की मंझिल है मेरे भाई
अब तक तू चला कष्ट भरी राहों पर
पग में छाले पड़ गये तेरे…..

पसीना चोटी से पादतळ पंहुचा
अपनी जिद्द की मशाल से ह्रदय चीरते
चारो और से दुख झेलते चला
चला तू भाई मेरे दिन और रात
अब पहुंचा है अपनी मंझिल के समीप
एक दौड़ और शेष है मेरे भाई…..

किस विध पार उसे कर जाओ भाई
इतना समीप आकर रुकना
यह काम नहीं सच्चे शूरों का
एक दौड़ ओर लगा ले मेरे भाई
अब क्यू थककर बैठे हो मेरे भाई
अब मंझिल तेरी दूर नहीं…….?
======================
जय श्री ब्रह्म ऋषि अंगिरा जी की

 

कवि: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933

Gyanjyotidarpan.com पर पढ़े ताज़ा व्यापार समाचार (Business News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट ज्ञान ज्योति दर्पण पर पढ़ें।
हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़े Gyan Jyoti Darpan

Connect with us on social media

Comments are closed.