कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: किताबें पढ़ना लोग भूल गये…?

किताबें पढ़ना भूल गये है अब लोग, अलमारी में पड़ी मन पसंद किताबें।

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किताबें पढ़ना लोग भूल गये…?
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किताबें पढ़ना भूल गये है अब लोग,
अलमारी में पड़ी मन पसंद किताबें
वाचनालय में रखी ज्ञान वर्धक किताबें
हर विषय को उज्जागर करने वाली
इतिहास प्राचीन सबकों सहज बताने वाली
ज्ञान के किवाड़ हर किसी का खोलने वाली
अथाग ज्ञान का भण्डार है ये किताबें
फिर क्यूँ नहीं पढ़ रहे लोग ये किताबें
पाठकों की संख्या हर महिने हर बर्ष घटती जा रही है
किताबों पर हल्की सी धूल जम गई
कारण नये जमाने का आया अब सामने
वाँटस् ऐप, फेसबुक और इंस्टाग्राम से जो मिले फुर्सत
अब किताबें लगा रही है पुकार सबकों
आओ मोबाइल, लेपटोप वालों किताबों की दुनियां में
ज्ञान के किवाड़ खोल दू झटके में
जीवन शैली तुम्हारी बदल डालूंगी
ज्ञान कोषिकाओं का प्रहार तेज तर्रार कर डालूंगी
ये इतिहास मेरा पुराना है
मैं बहुत कुछ कहना चाहती हूं
मैं इतिहास पुराना जानती हूं
कोई मुझे पढें तो सही,कद्दर करु मैं उस ज्ञानी की
किताबें पढ़ना भूल गये है अब लोग
अलमारी में पड़ी किताबें पुकार रही
कोई अज्ञानी मिले मुझसे तो उसे ज्ञानी मैं बना डालूंगी
मस्तिष्क की ग्रन्थियों को खोल डालूंगी
अक्षर से शब्द बने शब्दों से बनी भाषा
शब्द श्रृंखला से ज्ञान की हुई उत्पत्ति
प्रबुद्ध ज्ञानीयों की कलम से रची गई ये किताबें
ज्ञान से आये संस्कार समाज में
——–फिर……….
क्यूँ भूल जाते हैं लोग किताबें पढ़ना…..?
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जय श्री विश्वकर्मा जी की
लेखक: दलीचंद जांगिड़ सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933

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