कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: नवी बिंदणी घर आई……
नवी बिंदणी जद घर आई, खुशीयां हजार साथे लाई...
नवी बिंदणी घर आई……
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नवी बिंदणी जद घर आई
खुशीयां हजार साथे लाई
नवी बिंदणी हाथभर घुंघट निकाल आई
जद गांव गल्ली री लुगाइयों सगळी देखण आई
देख लुगाईयों ने वा घुंघट में मंध मंध मुस्कराई
पगे लागण ढूकी देराणीयों जेठाणीयों रे
सासुजी रे लाड कोढ सू पग दबाई
जेठ सुसरोजी ने दुर सू धोक लगाई
नणद बाई ने जूक जूक कर प्रणाम गले लगाई
इण प्रकार सू जूना रिती रिवाज निभाई
ले मटको नणद बाई रे साथे चाली पाणी ने पनघट पर
पग मा झांजर बिछुवा चम चम बाज रहियां है
पाणी री पणियारियों फासो मुड़ मुड़ देख रहियां है
नवी बिंदणी ने घर गुवाड़ी धणी रो नाम पूछ रहियां है
नवी बिंदणी मळक मळक मन हि मन मा शरमावे है
देख बिंदणी ने थुतकी बार बार नाके नजर उतारे है
थू तो भला घर री छोरी है जो हाथ भर घुंघट निकाळे है
मां बाप रो नाम भलो केविजे
थू तो संस्कारों री जाण राके है
आवता दैखीयां बडैरों ने जद मार्ग रे माए
बडैरों रो मान सम्मान राक देख दीवार सामे ऊभी रेवे है
इण रीत सू बडैरों रो मान बढ़ाई राके है
सोका घर री आई बिंदणी
सासु सुसरा रो और घर गुवाड़ी रो मान बढ़ायो है
संस्कार अपणे मां बाप रा साथे अनेक लाई है
इण रे कारणीये गांव गल्ली रा माय संस्कारों वाळी बहू कहलाई है
नवी बिंदणी आई है, संस्कार हजार साथे लाई है…..
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जय श्री विश्वकर्मा जी की
लेखक: दलीचंद जांगिड़ सातारा महाराष्ट्र
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