नरेंद्र शर्मा परवाना की कलम से: सृष्टि में प्रथम गुरु पिता है संतान का पूरा संसार है

कभी आपने सोचा, विचारा, चिंतन किया, मनन किया, मंथन किया कि पिता गृहस्थ की छत है, पिता बच्चों के सिर पर गगन है। पिता जीवन की सुगंध है, पिता तो महकता हुआ संतान का चमन है। पिता ज्ञान का उजाला है। पिता दिल की धड़कन है, दीन-ईमान है। पिता बच्चों के मन मंदिर में पूजा योग्य भगवान है। पिता बच्चों का शानदार संस्कार है। यही संतान के जीवन जीने का आधार है।

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किसी भी संतान के लिए उसका पिता यकीनन पूरा संसार है। पिता संतान के लिए आदर्श है। क्योंकि पिता में सारी की सारी योग्यताएं मौजूद हैं। पिता संतान का मित्र है, गुरु है, रक्षक है, संरक्षक है और पिता ही तो मार्गदर्शक है। स्कंद पुराण की गुरु गीता में लिखा है कि पिता प्रथम गुरु है। संतान के हृदय में पिता का दर्जा भगवान से भी से भी ऊंचा है। पिता से ही हम रंग बिरंगी इस दुनिया के दर्शन कर रहे हैं। पिता ना होता तो हम ना होते। इसलिए पिता से ही हमारा सारा जहां है।

कभी आपने सोचा, विचारा, चिंतन किया, मनन किया, मंथन किया कि पिता गृहस्थ की छत है, पिता बच्चों के सिर पर गगन है। पिता जीवन की सुगंध है, पिता तो महकता हुआ संतान का चमन है। पिता ज्ञान का उजाला है। पिता दिल की धड़कन है, दीन-ईमान है। पिता बच्चों के मन मंदिर में पूजा योग्य भगवान है। पिता बच्चों का शानदार संस्कार है। यही संतान के जीवन जीने का आधार है।

यह पिता का संदर्भ पढने लगे हो तो सोचना कि तुम भी किसी पिता हो, तुम्हारे भी पिता हैं। काश! ठंडे दिल से सोचते कि संतान के लिए पिता ज्ञान का सागर है, आदर्शों की भरी एक गागर है। पिता रास्ता दिखाने वाला मार्गदर्शक है। पिता अपने बच्चों का सुरक्षा कवच है। बच्चों को भूख लगे तो पिता निवाला देता है। भटके बच्चों को पिता राह दिखाता है, पिता ज्ञान का उजाला देता है। संतान के जीवन में हीरो का किरदार अदा करता है। पिता बच्चों को कंधों पर बैठाकर सवारी कराता है। मुसीबत पड़े तो पिता बिगड़े काज बना देता है।

विचारिए जब अपने बचपन में तुम्हें अच्छी पढाई करनी थी तब पिता अपने कपड़े नहीं सिलवाता था तुम्हारे को फाीस दे देता, खुद पैदल काम पर जाता तुम्हेे नई साइकिल लाकर दे देता। कभी एकांत में सोचना कि कब, क्या, क्यों और कैसे करना है, यह पिता ही तो समझाता है। पाठको! पिता जीवन निर्माता है, भाग्य विधाता है। पिता तो बच्चों का सृष्टा है, सृजनहार है। शायद इसीलिए कहते हैं कि पिता संतान का पूरा संसार है।

पिता तो उस नारियल की तरह है जो ऊंपर से सख्त लेकिन अंदर से नरम होता है। मेरे पिता श्री रामेश्वर शर्मा जांगड़ा कहा करते हैं कि सोना तो कीमती होता है लेकिन जब वह आग में तपता है तो आभूषण बनते हैं। जो सोना अलमारी में पड़ा रहता था वो आभूषण बन कर शरीर की शेाभा बढाने लगता है। इसलिए समझिए कि पिता का पावन हृदय पवित्रता का पैमाना देता है। विनम्रता, विनयशीलता का अहसास करवाता है। पिता प्रेम की खुशबू से लबरेज करता हमारे जीवन को महकाता है। पिता परोपकार के दिव्य गुणों से अपनी संतान काे अलंकृत करता है।

पिता वो कवि है जो रचनात्मकता, सृजनात्मकता, गुणात्मकता, सकारात्मकता के शब्दों से अपनी संतान रुपी कविता की रचना करता है। सज्जनता, शालीनता भरी जिंदगी को सृजित करने वाला पिता बेहतर सृजनहार होने का संदेश देता है। पिता को समझने के लिए एक बार अपने अंदर झांकिए यह ताे हर शैै, हर पल, धड़कती आपकी हर धड़कन में सुनाई देगा, हर स्वासं में अपने होने का अहसास कराएगा।

गौर कीजिएगा जो पिता को वृद्ध आश्रम में भेज देते हैं वो अपने अंदर झांक लें कि वो भी पिता हैं। तुम्हें अपने पिता के रुप में हर स्वांस में, कुछ खास सुनाई देगा कि जिससे हमें पहचान मिलती है। जो समाज में हमें जीने का हक दिलाता है, मान – सम्मान दिलवाता है। इसीलिए सच्चे हृदय से अपने पिता का गुणगान कीजिए। क्योंकि पिता संतान का पालनहार है। पिता संतान पूरा का पूरा संसार है।

यदि आप पाठ पुजा में विश्वास करते हैं तो बस! अपने पिता के बारे में थोड़ा सा और गहराई से विचार कीजिए कि यह तीन लोक, नौ खंड में, दसों दिशाओं में प्रकाशमान पिता है। पिता संतान के लिए परम है, पिता पवित्र है, पिता दिव्य ज्ञान है, संतान के लिए यही ब्रह्मज्ञान है। ऐसे दिव्य, भव्य, ब्रह्म स्वरूप पिता को आओ नमन करें। पिता का वंदन करें। अपना जन्मदाता का अभिनंदन करें। क्योंकि संतान जो भी हैं इस पिता की बदौलत हैं। इसीलिए यही पिता के अभिनंदन का आधार है।

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3 Comments
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