घेवरचन्द आर्य की कलम से: 17 सितम्बर भगवान् विश्वकर्मा पूजा दिवस पर विशेष लेख

सृष्टि के आदि में जब विराट विश्वकर्मा प्रभू ने मनुष्य सृष्टि की रचना की तो मनुष्यों के हितार्थ ज्ञान विज्ञान कला कोशल के लिए ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान क्रमश अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ऋषियों के हृदय मे प्रगटाभूत किया।

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संसार के प्रथम वैज्ञानिक विश्वकर्मा का पूजा अर्थात् सम्मान दिवस है 17 सितम्बर
विश्वकर्मा पूजा दिवस प्रतिवर्ष कन्या सक्रांति को सितम्बर महीने की 17 तारीख को बिहार झारखंड कर्नाटक ओडिशा एवं विशेषकर उत्तर भारत मे उल्लास एवं विधि के अनुसार मनाया जाता है। इस दिन सबसे बड़े परमात्मा विराट विश्वकर्मा की देवयज्ञ द्वारा और वास्तुकार तथा देव शिल्पी ऋषि विश्वकर्मा की पूजा उनके उपदेशों और संदेशों को हृदयगम करके तदनुसार स्वयं आचरण करने के संकल्प के रूप मे मनाई जाती है। कई लोग अज्ञान के कारण पूजा दिवस को ही जन्म दिवस के रूप मे मनाते है। जबकि ऋषि विश्वकर्मा का जन्म माघ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ है।

कौन है ऋषि विश्वकर्मा ?
सृष्टि के आदि में जब विराट विश्वकर्मा प्रभू ने मनुष्य सृष्टि की रचना की तो मनुष्यों के हितार्थ ज्ञान विज्ञान कला कोशल के लिए ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान क्रमश अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ऋषियों के हृदय मे प्रगटाभूत किया। उन चारो ऋषियों से चारो वेदो का ज्ञान प्राप्त करने वाले आदि ऋषि ब्रह्मा ही आदि प्रथम विश्वकर्मा है। ब्राह्मण, निरूक्त और पुराणो मे उन्हे भुवन का पुत्र कहाँ गया है। इनको ही विश्व का प्रथम इजिनियर और वास्तुकार माना गया है।

भगवान् ऋषि विश्वकर्मा द्वारा रचित अद्भुत ग्रथ
इतिहास के अनुसार प्रजापालक ऋषि विश्वकर्मा अदिती की संतान देव और असुरो के वास्तुकार थे। विश्वकर्मा ने विश्व की सर्वश्रेष्ठ मानव सभ्यता देवो के लिए उड़ानरथ, वाहन महल और अस्त्र शस्त्र आदि का निर्माण किया । वे अदिती की संतान देव और असुरो के वास्तुकार थे। विश्वकर्मा ने अनेक शास्त्रों की रचना की जैसे- कृषि शास्त्र, जल शास्त्र, खनिज शास्त्र, नौका शास्त्र अर्थात समुन्द्री जहाजों की निर्माण कला, रथ शास्त्र अर्थात सडक पर चलने वाले वाहन बनाने की तकनीकी, विमान-शास्त्र, वास्तु-शास्त्र, आयुद्ध-शास्त्र, नगर रचना-शास्त्र और यन्त्र-शास्त्र आदि । इस प्रकार अपराजित अर्थात् विश्व ब्रह्म कुलोत्साह नामक ग्रन्थ के अनुसार विश्वकर्मा जी ने 12 हजार शिल्प शास्त्रों की रचना की, बाद में शिल्पी विद्वानों द्वारा कलियुग तक 4000 और शिल्प ग्रन्थों का समावेश किया गया।

देवराज इन्द्र के महाअस्त्र सहित अद्भुत नगर एवं भवनो का निर्माण
पुराणो के अनुसार देवताओं के राजा इंद्र का महाअस्त्र जो ऋषि दधिची के हड्डियों से बना हुआ था उसका निर्माणकर्ता ऋषि विश्वकर्मा है। सत्ययुग में सोने की लंका जहाँ असुरराज रावण रहता था, त्रेतायुग में द्वारका शहर, और द्वापरयुग में हस्तिनापुर शहर का निर्माण जो पांडवों और कौरवों का राज्य था सभी का निर्माता ऋषि विश्वकर्मा को ही माना जाता है।

क्या तीनो युगो मे अद्भुत कर्म करने वाले विश्वकर्मा एक ही है।
विचारणीय प्रश्न यह है की क्या तीनो युगो का अद्भुत कर्म करने वाले ऋषि विश्वकर्मा एक ही था या अलग अलग। इसका उत्तर यह है कि सब अलग-अलग ही थे जो भी व्यक्ति ऋषि विश्वकर्मा के गुणो को धारण कर ज्ञान विज्ञान कला कौशल से नये-नये अविष्कार करके जगत का उपकार करता है वही ऋषि पद प्राप्त कर विश्वकर्मा बन जाता है। इसलिए सृष्टि के आदि से अब तक अनेक विश्वकर्मा होने के प्रमाण पुराणो मे उपलब्ध है।

हम किस ऋषि विश्वकर्मा का पूजन करे
सृष्टि के आरम्भ से अब तक अनेक विश्वकर्मा हो चुके है। तो प्रशन उठता है कि हम किस विश्वकर्मा की पूजा करे? इसका जबाब यह है की- सृष्टि के आदि मे प्रभास ऋषि के घर माता भुवना की कोख से माघ माह के शुक्ल की त्रयोदशी को जो बालक सतकाम जन्मा और आगे चलकर प्रथम ब्रह्मा बना वही ऋषि विश्वकर्मा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसी की पूजा का दिवस अर्थात शिक्षा पूर्ण कर उपाधि ग्रहण करने दिवस है। इसी दिन युवक सतकाम को विश्वकर्मा को उपधि दी। इसी दिन देवो ने ऋषि विश्वकर्मा को देव शिल्पी की उपाधि दी। इसलिए यह दिन विश्वकर्मा पुजन दिवस के रुप मे प्रचलित हुआ। ऋषि विश्वकर्मा समस्त मनुष्य जाति के लिए वन्दनीय और पूजनीय है। उसी की पूजा करनी चाहिए‌‌।

भारत मे विश्वकर्मा पूजा कौन कौन करते है।
भारत मे विश्वकर्मा पूजा दिवस लगभग सभी दफ्तरों और कार्यालयों मनाया जाता है, विशेषकर इंजिनियर, आर्किटेक्ट, चित्रकार, मैकेनिक, वेल्डिंग दुकान वालें, या कारखानों में और कार्यालयों की अच्छे से साफ़-सफाई करके ऋषि विश्वकर्मा भगवान के प्रतिकात्मक प्रेरणा ग्रहण करने के लिए चित्र तस्वीर पूजा के लिए सजाते हैं। और उनके समक्ष हाथ जोड़कर ज्ञान विज्ञान कला कोशल प्रदान करने की अरदास करते है। इस पूजा में आदि शिल्पकार और वास्तुकार “ ऋषि विश्वककर्मा” की पूजा की जाती है।

इस प्रकार करे विश्वकर्मा की पुजा
सभी लोग सुबह नहाकर पूजा स्थल पर भगवान ऋषि विश्वकर्मा की फोटो लगाते है। औजारों की साफ सफाई कर पूजा की जाती है। भगवान ऋषि विश्वकर्मा का ध्यान करते है। वेदो मे लिखे ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्रो से विराट विश्वकर्मा की प्रार्थना उपासना की जाती है। पश्चात विधिवत देवयज्ञ कर समस्त मनुष्यों के मंगल और विश्वशान्ति की कामना की जाती है। फिर विराट विश्वकर्मा के यज्ञ स्वरूप प्रभो का ध्यान कर आरती की जाती है । उसके पश्चात ऋषि विश्वकर्मा के स्वरूप का ध्यान कर उसके जैसे गुण कर्मो को धारण कर वैसा ही बनने का संकल्प लेते है। तथा नया और कुशल शिल्पज्ञान, वास्तुज्ञान मांगते है। और कहते है की शिल्प कर्म करते समय, कोई भवन, इमारत बनाते समय कोई दुर्घटना न हो। अर्थात इस दिन श्रम की आराधना की जाती है।

सृष्टि रचियता विश्वकर्मा और देव शिल्पी ऋषि विश्वकर्मा मे भेद।
सृष्टि रचियता विराट विश्वकर्मा तो अजन्मा और अन्नत है। उसका कोई जन्म मरण नही होता है। विराट विश्वकर्मा ने अपनी अनन्त शक्ति और सामर्थ्य से सृष्टि के मूल तत्व सत रज और तम तथा पंच महाभूत तत्वो को मिलाकर बीज से गर्भ मे तैयार होकर बाहर आने वाली सृष्टि की रचना की । जो धीरे-धीरे अपनी विकास प्रक्रिया द्वारा पूर्ण आकार को प्राप्त होती है । हम देखते है कि जो कुछ ब्रहाण्ड मे है वही मनुस्यादि जीवो के शरीर मे भी है। अर्थात यह ब्रहाण्ड और मनुष्य शरीर एक दुसरे का प्रतिरूप ही है। ऋषि विश्वकर्मा जो तीनो लोको भूगर्भ भूलोक तथा खगोल आदि विधाओं, प्रकृति के पांचो तत्व अग्नि वायु आकाश जल और पृथ्वी के गुण धर्म को जानकर विश्व कल्याण हेतु अविष्कार व रचनाए करते है। विराट विश्वकर्मा और ऋषि विश्वकर्मा मे समानता यह है की दोनो की रचनाएँ प्राणी मात्र के कल्याण के लिए बनाई जाती है।
परमात्मा विराट विश्वकर्मा की रचना भगवान् ऋषि विश्वकर्मा नही कर सकते और भगवान् ऋषि विश्वकर्मा की रचना विराट विश्वकर्मा नही कर सकते। यही दोनो मे भेद है। लेकिन उन्ही विराट विश्वकर्मा के गुणो का धारण करके ज्ञान विज्ञान कला कोशल से समस्त जगत का कल्याण करने वाले ऋषि विश्वकर्मा का जन्म होता है। ओर उसी का जन्म और पूजन दिवस मनाया जाता है।

“महाभारत के अनुसार भगवान विश्वककर्मा” का अवतरण
महाभारत आदि पर्व अध्याय 66 श्लोक 17,18,19 के अनुसार
सृष्टि उत्पत्ति के कुछ काल बाद सतयुग के आरम्भ मे पितामह के पुत्र मनु हुए मनु का पुत्र प्रजापति था। उस प्रजापति के आठ वशु अर्थात पुत्र हुए। धर, ध्रुव, अह, अनिल, अनल, प्रत्यूष, सोम और प्रभास ये आठ पुत्र हुए। स्कन्द पुराण प्रभास खण्ड अध्याय 29 श्लोक 96 के अनुसार प्रसास ऋषि की धर्म पत्नि जो देवताओं के गुरु वृहस्पति की बहन वेदो की विदूषी ब्रह्मोपद्रेष्ट्री तथा योग विधा को जानने वाली थी। जिसका नाम भुवना था। की कोख से माघ माह के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को एक तेजस्वी बालक का अवतरण हुआ। जिसका बचपन का नाम सतकाम था। जो अपनी सामर्थ्य और पुरूषार्थ से वेद मंत्रो का साक्षात्कार कर ऋषि विश्वकर्मा के रूप मे जगत मे विख्यात होकर लोक मे पूजनीय देव बना।

भगवान् ऋषि विश्वकर्मा के पुत्र-पुत्रीयो का वर्णन
स्कन्द पुराण के अध्याय 6 के अनुसार विश्वकर्मा के उसकी पत्नी कृति के गर्भ से पांच पुत्र और दो पुत्रियां उत्पन्न हुई। अध्याय 5 श्लोक 13 के अनुसार विश्वकर्मा के पांच पुत्र- मनु मय त्वष्टा शिल्पी और देवज्ञ हुए। पुत्रीयां संज्ञा और बहिष्मती हुई।

भगवान् ऋषि विश्वकर्मा के 16 गुणो कलाओ का वर्णन
महाभारत कालीन मय मुनि रचित मयमत्तम् नामक वास्तु शास्त्र ग्रथ के अनुसार ऋषि विश्वकर्मा के 16 गुण इस प्रकार है-
1.भू गर्भ, भूलोक और धूलोक की सभी विधाओं का ज्ञाता।
2.सभी प्रकार की शिल्पकला मे शिद्धहस्थ। 3.यज्ञोपवीत धारक चारो वेदो का पंडित। 4.समस्त वेदांगो का ज्ञाता। 5.इन्द्री दोश रहित सर्वागं पूर्ण। 6.दयालु। 7.चरित्रवान। 8.धर्मात्मा। 9.प्रसन्नचित्त व अहंकार शून्य। 10.ईर्ष्या दोष रहित। 11.प्रमाद आलस्य रहित। 12.गणित व ज्योतिष का पंडित। 13.समस्त इतिहास का ज्ञाता।14.सत्यवादी। 15.इन्द्रजीत ब्रह्मचारी। और 16.स्थित प्रज्ञ ये सब गुण कर्म विश्वकर्मा जी मे है इन गुणो को धारण कर ज्ञान विज्ञान शिल्पकला आदि से लोकोपकार करता है वही विश्वकर्मा बन जाता है । विश्वकर्मा पूजा पर हम भी इन गुणो को धारण करने का संकल्प ले। यही विश्वकर्मा की सच्ची पूजा है।

विश्वकर्मा की पूजा अर्थात गुणो को धारण करने का महत्व
हम सभी के जीवन में शिल्प ज्ञान विज्ञान का अत्यधिक महत्व है।
कोई भी घर, मकान, भवन, नवीन रचना का काम शिल्प के अंतर्गत ही आता है। कुशल शिल्प विध्या और ज्ञान से मनुष्य विशाल इमारते, पुल, वायुयान, रेल, सड़क पानी के जहाज, वाहन आदि बनाता है। आधुनिक समय में इंजीनियर, मिस्त्री, वेल्डर, मकेनिक जैसे पेशेवर लोग शिल्प निर्माण का काम करते है। यदि मनुष्य के पास शिल्प ज्ञान न हो तो वह कोई भी भवन, इमारत नही बना पायेगा। इसलिए ऋषि विश्वकर्मा को “वास्तुशास्त्र का देव” भी कहा जाता है। इनको ही “प्रथम इंजीनियर”, “देवताओं का इंजीनियर” और “मशीन का देवता” भी कहते है । कहते है की विश्वकर्मा की पूजा से अर्थात विश्वकर्मा के गुणो को धारण कर तदनुसार आचरण करने से व्यापार में तरक्की होती है। मशीने खराब नही होती है। व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है। जिस व्यक्ति के पास 1 कारखाना होता है उसके पास अनेक कारखाने हो जाते है।

 

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1 Comment
  1. 0906 says

    Hi, yyes ths paragraph is actually fastidioys and I
    habe learned llot of thigs ffrom it oon thhe topic of blogging.
    thanks.

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