दीपक आहूजा वालों की कलम से: प्यार की पराकाष्ठा

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प्यार की पराकाष्ठा

क्या प्यार की भी कोई, पराकाष्ठा होती है,

यह तो इन नैनों की, हरदम जलती ज्योति है।

क्षितिज पर दिखता है, प्रेम अनूठा अनुपम,

विश्वास, सम्मान, प्यार का, यह है संगम।

जैसे पृथ्वी और आकाश का, हो रहा विलयन,

वैसे ही विलय हो रहीं, दो आत्माएँ और अंतर्मन।

यह प्यार का क्षितिज, समर्पण का प्रतीक है,

भावनाओं के इस वेग में, यह शांति अजीब है।

दूर से दिखती हैं, इस क्षितिज की गहराइयाँ,

अक्सर ही कह जाती हैं, अनसुनी कहानियाँ।

मुख पर विराजे, अनंत जीवन के सुखी भाव,

क्षितिज तक चली जाएगी, प्रेम की ये नाव।

दीपक आहूजा लेखक, कवि, उद्यमी और व्यवसायी।। 

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