दीपक आहूजा की कलम से: हृदय की वेदना

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हृदय की वेदना

कोई धड़कनें न सुन ले, हृदय की वेदना संभालिए,

पाषाण बन के बैठ कर, मन की तृष्णा मिटाइए।

कभी स्थिर, कभी विचलित, बदलती यह हर-पल,

प्रियतमा की राह तकते, सिमट जाए यह सकल।

भीषण प्रहार कर रहीं, विगत स्मृतियों की आँधियां,

धड़कनों की कसक, हृदय के अंतस् की झाँकियां।

कभी धीमी, कभी तेज़, प्रकाश पुंज की है स्त्रोत,

सत्य और निष्ठा का स्वरूप, मंदिर की कोई ज्योत।

किसी गीत का अंतरा, और स्वर जैसे कोई राग,

तपस्वी का कठिन तप, किसी सन्यासी का बैराग।

कभी कोमल, कभी कठोर, नित नया धरे यह रूप,

कभी शीतल सी छाँव, कभी सर्दियों की मीठी धूप।

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1 Comment
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