दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: घर ग्रस्ती में आपका स्थान कहा व कितना है…?
जब तक आप अकेले है वह घर में बड़े है तब तक आपका हक्क 100% चलेगा व शादी होते ही पत्नी के आते ही यह हक्क 50% पत्नी के खाते में चला जाएगा कारण वह आपकी अर्दाअंग्नि बनकर आपके संसार की भागीदार के रूप में आपके घर आई है।
✍ लेखक की कलम से……”सामाजिक लेख”
संसारिक दुनिया में आपके घर में आपका स्थान (हक्क) कितना व कहा पर है, यह हकीकत समय गुजरने के बाद जरुर ध्यान में आती है पर चलते समय को भापना भी हित का होता है।
जब तक आप अकेले है वह घर में बड़े है तब तक आपका हक्क 100% चलेगा व शादी होते ही पत्नी के आते ही यह हक्क 50% पत्नी के खाते में चला जाएगा कारण वह आपकी अर्दाअंग्नि बनकर आपके संसार की भागीदार के रूप में आपके घर आई है।
समय चक्र चलता रहता है, आप संसार की गतिविधियों में लिप्त होकर सामाजिक व पारिवारिक अपनी जबाबदारी निभाते निभाते एक बेटे का बाप बनते ही आपका हक्क ओर घटकर 33% हो जाता है फिर दुसरे बेटे का जन्म होते ही घर संसार में भागीदारों की संख्या बढ जाती है तब आपका हक्क तेजी से घटकर 25% पर आ जाता है, समय पाकर बड़े बेटे का विवाह होते ही बहु का आगमन होते ही आपके हक्क का प्रतिशत घटकर 20% हो जाएगा और कुछ बर्षों बाद छोटे वाले बेटे की बहु भी इसी घर में जाती है तब आपका हक्क 15% प्रतिशत ही रह जाता है और समय बीत जाने के बाद आप आयु के रिटायर्ड आयु (60 बर्ष) में पंहुच जाते है वह बचा हुआ 15% हक्क भी स्वखुशीने से परिवारजनों को छोपकर आपको निवृत्ती लेने में ही भलाई समजना चाहिए।
आयु के 60 बर्ष बाद अपनी कमाई की कुछ ऐफ, डी, (बैंक बेलेन्स) ही आपके पास रह जाती है ताकी अपनी आवश्यकता के अनुसार खर्चे के लिए किसी के आगे हाथ फैलाना नहीं पड़े….. अब आप कुछ अपनी चलाना चाहते हो तो वह है मित्रों के साथ बैठकर आपनी बात (सुख दुख के बिते पल की यादें) चला सकते हो यही मित्र ही आपकी सबसे बड़ी पुंजी होगी और है भी यह सत्य……बुढापे में मित्र ही एक धीर बंधवाने वाला होता है इसलिए मित्रों में बैठकर समय बिताएंगे तो ही सुख की अनुभूति होगी व घर संसार में ध्यान लगाओगे तो दुखी हो जाओंगे।
राग लोभ रुठना नाराजगी शारिरीक वेदनाएं यह सब आपकी पत्नी व दोस्तों में ही आप शेअर कर सकते है कारण घर में आपकी अब कोई सुनता भी नहीं है वह ध्यान रहे की आपको कुछ हुक्कम चलाना भी नहीं चाहिए……
अगर चलाने की बहुत ईच्छा हुई है तो अपने पैरो पर चलकर अपने चाहते प्रेमी हित चिंतक मित्र के पास जाइये वह अपनी सुख दुख की कथा उसे सुनाइये, घर में अब अपनी आज्ञा चलाना बंद किजिए ताकी आपका जीवन का अंतिम समय आराम से गुजर जाएगा जी यही बुढ़ापे में समझदारी का विषय हो सकता है और घर में मनमानी करोगे तो दुखी हो जाओंगे।
बुढापे की संगत में मित्र हि आपकी रियल पूंजी है……सच्चा साथी है….
डाँक्टर की सलाह अनुसार दवाइयां समय पर लेते रहिएगा वह हंसते – हंसाते रहियेगा जी सामाजिक कार्यों में लिप्त रहे और हो सके तो लेख कविताएं लिखते रहियेगा जी ताकी समय अच्छे से गुजर जाएगा।
लेख में …….. % (प्रतिशत) यह एक निम्न अंदाज है वह हर जन जन के अपने स्वभाव के अनुसार अपने अपने परिवार में अलग अलग हो हो सकते है जी…..
सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय
जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933
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