दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: नेत्र, जिह्वा के शौक है हजार; नशा है हि सर्व नाशी……
नशा का पहला गेअर अपनी संगत व उत्तेजना है वह उत्तेजना करवाती है नशे की पूर्तता तद्पश्चात करवाती है सर्व नाश..... " मुख्य जड़ नशा है हि सर्व नाशी ".....
लेखक की कलम से….
नेत्र जिह्वा के शौक है हजार…..
नेत्र व जिह्वा के शौक यह दृष्टी सुख व स्वाद रस की पूर्तता कराने वाले शौक है जो अमली पदार्थों के शौक की श्रैणी में नहीं आते है पर यह शौक भी हम नहीं किसी से कम वाले शौक ही है, जब तक यह अपनी खर्चे की सिमाओं में रहते है व मासिक आय के अन्दर सिमीत रहते तब तक ठीक है मगर यह शौक जब बै फाम छूट जाते है तब ये भी बड़े खर्चिक बन जाते है, कमाई आठ्ठानी खर्चा रुपया वाली बात हो जाती है तब इन शौकों को पूरा करने की आद्दत (लत) पक्की हो जाती है तब यह खर्चें स्वभाविक लगने लगते है, इन गुमने फिरने व हाँटलों में खाने के शौकीन लोगों के पास पैसों की कमी होने के चलते इन्है पुरा करने हेतु गाड़ी, घोड़े ,सोने चांदी की ज्वेलरी, खेत जमीन तक बेचकर इस शौक की भेट चढ़ जाती है सरासर समाज में यह घटनाएं देखने को मिलती है।
यह जीह्वा के शौक पुराने के चक्कर में चटपटे व्यंजन खाने के लिए बाहर हर रोज हाँटलों में खाने की आदत पड़ जाती है व काम धन्धे छोड़कर अति गुमने फिरने वालों की यही दशा अंतिमकाल में होती है, इसका कारण यह होता है की कमाई आठ्ठानी खर्चा रुपया वाली कहावत यहां फिट बैठती है। ज्यादा घूमना फिरने से कमाई का जरिया कमजोर हो जाता है, काम धन्धे से ध्यान हट्ट जाता है वह हाँटलों में हर दिन खर्चा करने की आद्दत से जेब खाली होने की घटना हो जाती है, जब तक होश आता है तब तक सब कूछ पूर्वजों की जायदाद तक बिक जाती है वह पश्तावा शेष रह जाता है, यह उपरोक्त दोनो शौक पुरा करते करते पूर्वजों की जायदाद भी भेट चढ़ ( बिक जाती ) जाती है।
नशा है हि सर्व नाशी
नशा का पहला गेअर अपनी संगत व उत्तेजना है वह उत्तेजना करवाती है नशे की पूर्तता तद्पश्चात करवाती है सर्व नाश….. ” मुख्य जड़ नशा है हि सर्व नाशी “…..
कहते है नशे कितने ही प्रकार के होते है, कुछ अपशकुनी होते है जो समाज की नझरों से ओझल होकर अंधेरे में किए जाते है, चोरी छुपके किए जाते है बहुत खर्चिक होते है, शरीर को हानि भी बड़ी तगड़ी पंहुचते है वह कुछ नशे शुकनी तो होते है जो समाज की देखरेख में समाज की जाजम पर खुले आम किए जाते है जहा पर समाज प्रगति व समाज न्याय की अच्छी बातें की जाती है साथ में यह शुकनी नशे (समाज मान्यता वाले) सबकी देखरेख में धूम-धड़ाके से आम सभा में किए जाते है, यह नशे भी बड़े ही खर्चिक होते है, उदाहरणार्थ डोडा, चिलम, हुक्का, बिड़ी व सिगरेट यह भी शरीर को हानि पंहुचते है वह कितनी ढोणीयों (जन वस्ती) को ले डूबते है। शौक व नशा यह दोनो अपनी सिमाएं पार करने के बाद अच्छी खासी चल रही जिन्दगी की गाड़ी को पटरी से नीचे उतार कर रख देती है यह सत्य घटनाएं है इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है। पैसों की बर्बादी, शरीर रोगी हो जाता है वह काम धन्धे रुळ जाते है जिसके कारण मासिक, वार्षिक आय कम हो जाती है या फिर सम्पूर्ण रुक जाती है।
मराठी में मुहावरा…. ⬇
अति शौक जायदाद संपुष्टात आणीन
अति नशा जीवन संकटाला नेईल
म्हणून कुठले ही शौक, नशा अट्टोक्यात असावे किवा नशा कुठला ही प्रकार चा करु नये….
अति सर्व वर्जंतू :
स्वताहून आपल्या कर्माने जीवन धोक्यात आणू नये
“कमवा खावा, आणि म्हातारपण साठी शिल्लक ठेवा”
🎤 संतवाणी……
भावार्थ = अति शौक व अति नशा निषेध है, जो खुद का भविष्य तो बिगड़ता है ही,पर आने वाली पिढियों का भविष्य भी बिगाड़ कर रख देता है।
शौक सिमित रखे व नशा निषेध है
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जय श्री ऋषि अंगिरा जी की
लेखक दलीचंद जांगिड सातारा
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