दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: घोर कलयुग आ रहा है
इसके पीछे बड़ा राज छुपा है कारण सही मायने में जीन्दगी हमने व हमारे बुजुर्गो ने जी है ऐसा मेरा मानना है। अब बच्चों को मेहमान आने पर हाॅल (ड्राॅईंग रुम) में बुलाने पर मेहमानों से मिलने से इंकार कर देते है। कही सामाजिक समारोह में चलने का कहने पर बच्चें हमें मना कर देते है,वहा हमारा क्या काम है.....?
संवेदना हीन होते जा रहे है हमारे बच्चें, मशीनरी युग की शुरुआत हो चुकी है, सावधान हो जायेगा वर्ना पश्ताने के अलावा हाथ कुछ नहीं बचेगा…..?
संवेदनाएं लूप्त होती जा रही है, मशीनों के साथ हमने (हमारी नई पिढ़ी) जीवन जीने को प्राथमिकता दी है व जिन्दगी जीने के अस्सल तौर तरीकों को हमने दुसरी पादान पर रख दिया है, इसलिए हम (हमारी नई पिढ्ढी) संवेदना हीन होते जा रहे है। हम है आखिरी पिढ्ढी हम क्यू कहते है….?
इसके पीछे बड़ा राज छुपा है कारण सही मायने में जीन्दगी हमने व हमारे बुजुर्गो ने जी है ऐसा मेरा मानना है। अब बच्चों को मेहमान आने पर हाॅल (ड्राॅईंग रुम) में बुलाने पर मेहमानों से मिलने से इंकार कर देते है। कही सामाजिक समारोह में चलने का कहने पर बच्चें हमें मना कर देते है,वहा हमारा क्या काम है…..?
आप जाकर आयेगा हम वहा बोर (नर्वश) हो जायेंगे व सारा दिन मोबाईल काॅम्पयुर पर लगे रहते है ओर यही पिढ्ढी आगे चलकर बड़ी होने पर व घर फर्म चलाते या नोकरी करते समय इनका व्यवहार चलाने का तरीका भी संवेदना हीन ही होगा।
कारण नई पीढ़ी गेजेडस् के साथ कम्फर्टेबल है पर इंसानों के साथ नहीं है यही पीढ़ी आगे चलकर कम्पेरीजन, कम्प्लेंट, व काँम्पीटेशन में विश्वास रखने वाली कार्य प्रणाली में कार्यरत रहेगी तब संवेदनाएं हीन होगी हमारी यह पीढ़ी। अब आने वाले समय में हम इसी मशीनरी युग से ही गुजरने वाले है। समाज में बड़ा बदलाव आने वाला है। मनुष्य मनुष्य से प्रेम नही करेगा। सिर्फ हर काम को ओन लाईन महत्व देगा व हर व्यवहार को व्यौपार (मुनाफा) के हिसाब से देखने का नझरीयां ही हर मनुष्य (नवी पिढी) अपनाएगा व धनवान बनने की होड सी लग जायेगी, आने वाले 25 से 40 बर्ष तक हम इसी आंधी तूफान से गुजरने वाले है। इसी को कलयुग (मशीनरीयुग) कहते है, इस जीवन शैली में जीवन जीने की कला में रस नहीं होगा, सिर्फ “ड्राय लाईफ” होगी जो पैसे कमाने व अपना माल बेचकर धनवान बनने की कला को प्रधानीयता दी जाएगी। प्रेम रिश्ते व मानवता की झलक दूर दूर तक नही दिखाई देगी। ऐसा नई पीढ़ी का भविष्य मुझे नझर आ रहा है।
अब कोई पुछे मुझसे की इसका सही मार्ग (साँलेशन) क्या हो सकता है तब मैं कहूंगा की अपने आप को अंदर से बदलने की जरूरत है वर्ना कुछ नही बदलेगा, आने वाले 30, 40 बर्षो के बाद संवेदना हीन जीवन शैली का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा, आप मशीनरी (काॅम्पुरेटर, स्मार्ट फोन) के अधीन हो जायेंगे की कोई आपको प्रेम से किसी समारोह में बुलाएगा तब भी आपके हाव – भाव कृत्रिम ही होंगे कारण तब तक आप (नई पीढ़ी) “ड्राय लाईफ स्टाईल” (संवेदना हीन जीवन शैली) में पंहुच चुके होंगे।
भविष्य में इस प्रकार की तनाव भरी जीवन शैली में हमारी नवीन पिढी का प्रवेश अब शुरु हो चुका है, ऋषि महात्मा कहते है की अधिक लाड प्यार से संतानों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते है और दंड देने से शिष्य व संतान गुणवान होते है, इसलिए इस पर विचार होना चाहिए, गेजेडस् के साथ कम्फर्टेबल है यह पीढ़ी, पैसा तो बहुत कमाएंगे मगर संवेदनाएं मर चुकी होगी व प्रेम भावना दूर दूर तक दिखाई नहीं देगा। इस प्रकार से इस कलयुग का प्रभाव बढते जाएगा। ऐसा भविष्य मुझे दिखाई दे रहा है जी। इसीलिए समय रहते नव पिढ्ढी को अंदर से बदलने की शिक्षा संस्कारों पर जोर देकर इस खतरे से नई पिढ्ढी बचाना चाहिए वर्ना देर हो चुकी होगी वह पश्ताप के अलावा हाथ में ओर कुछ नही बचेंगा जी।
उदाहरणार्थ कल मैं किसी मुख्य सड़क से गुजर रहा था, एक कार वाले ने एक टू व्हीलर वाले को सामने से धड़क मारी तब लोग अपने मोबाइल से उस घायल आदमी की तस्वीरें ले रहे थे, जब की इंसानियत कहती है की तस्वीरों से पहले उसे वैधकीय सुविधाएं देनी चाहिए, जल्दी से अस्पताल पहुंचाना चाहिए। तब मुझे मुंह खोलकर कहना पड़ता है की हमारी संवेदनाएं मर चुकी है। हम संवेदना हीन होते चले जा रहे है।
रास्ते में आपका कोई परिचित व्यक्ती मिले तब दस मिनिट रुककर प्रेम पूर्वक हाथ से हाथ मिलाकर हालचाल पूछना चाहिए। परिवार में सब कूशल मंगल है क्या, बस यही रास्ता संवेदनाओं के साथ प्रेम नगर (खुशीयों की बस्ती) की तरफ जाता है व आपको सदैव खुशीयां प्रदान कर्ता है।
मशीनरी (कलयुग) युग के साथ साथ संवेदना (प्रेम भाव) की शिक्षा (संस्कार) की नित्यान्त जरुरत है वह घर से व गुरुजनों से दी चाहिए।
आप व हम मिलकर यह दुनिया बनाते है वह चलाते है तब यह जबाब देहि भी अपनी ही बनती है। हम और आप अपने अंदर से बदलाव करे व नई पीढ़ी को भी यही ज्ञान दे व इसी रास्ते से ले जाएं।
जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933
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