दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कविता अमर रहती है (सिरियल न. 3)

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कविता अमर रहती है(सिरियल न. 3)
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लोग कहते है कविता समय बर्बाद करती है,

ये क्या कम है कि कवि जाने के बाद दुनिया याद करती है !!

कविता व लेख लिखना ये हंगामा खड़ा करना मकसद नही है मेरा,

समाज में प्रगति की लहर दोड़ी चली आएं !!

ये उद्देश्य है मेरा……….

ये आग मेरे छीने में ना सही,
तेरे छीने में जलती रहनी चाहिए !!

ताने लाख मारे दुनिया चाहे,
लक्ष्य को पूरा करने मैं
रोज सवेरे निकल पड़ता हूं !!

माना की शरीर मेरा जीर्ण – शीर्ण की ओर बढ़ रहा है,
पर लक्ष्य मेरा प्रतिदिन युवा हो रहा है !!

हम भले ही भुखे प्यासे रह जायेंगे,
पर समाज में प्रगति के लिए कदम हमारे रुकने न पायेंगे !!

भड़की चिन्गारी से अनेक मशाल हम जला ले जायेंगे,
घर घर जायेंगे हम, प्रगति का अलख जगायेंगे !!

ये आग मेरे छीने में ना सही,
तेरे छीने में जलती रहनी चाहिए !!

माना की मंझील मेरी दूर है,
पर करिश्मा कलम् का ठहरता नही !!

शब्दों की समय सिमा नही होती,
शब्द ब्रह्म स्वरुप होते है !!

शब्दों की विलेक्ष्ण रचना से बनती है कविता,
ये माँ शारदे का दिया हुआ प्रसाद होता है भाई मेरे !!

इसीलिए……

कविता अजर अमर है,
लोग सदियों तक गुन गुनाते रहेंगे….

आज का दिन आपका मंगलमय हो।

🙏जय श्री विश्वकर्मा जी री सा 🙏
कवि: दलीचंद जांगिड सातारा महा.
मोबाईल 9421215933

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2 Comments
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