दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कविता माँ शारदे का प्रसाद है

जब भी कोई त्यौहार हो ओर घर में मिठाई बने तब सबसे पहले घर के मंदिर में अपने ईष्ट देवताओं को चढाया जाता है। ठीक उसी तरह जब भी कुछ नया व अच्छा लिखा जाता है।

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कविता लेख यह माँ शारदे का दिया हुआ प्रसाद हि है……
जो माँ शारदे के चरणों में बैठकर उपासना करने के उपरान्त माँ शारदे की कृपा दृष्टि से मिलता है जो पहले घर के देवता के मंदिर में चढ़ाया जाता है व तद्पश्चात उसका वितरण किसी प्लेट फार्म पर (स्टेज पर) , समाज पत्रिकाओं व डिटीझल वेवसाईड या डिटीझल पत्रिकाओं को प्रकाशित हेतु भेजा जाता है।

जब भी कोई त्यौहार हो ओर घर में मिठाई बने तब सबसे पहले घर के मंदिर में अपने ईष्ट देवताओं को चढाया जाता है। ठीक उसी तरह जब भी कुछ नया व अच्छा लिखा जाता है। तब हम लोग घर मंदिर में देवताओं के चरणों में यह रचना की लिखी चिठ्ठी रखते है। वह माँ शारदे व ईष्ट देवता से आशिर्वाद लेते है। तभी वह रचना फलित होती है व माँ शारदे का दिया हुआ प्रसाद बन जाता है।

यह प्रसाद पाने के लिए तो हम (लेखक /कवि) माँ शारदे की उपासना के समय छोटे बालक समान गिड़गिड़ाते रहते, आंखों से आंसू बहाते रहते है व इस “ज्ञान की मांग याचना” करते रहते है तब माँ की कृपा बरसती है तब लेखन कार्य फलित होकर साहित्य का एक भाग बन जाता है तब काव्य संग्रह की एक झलक दिखाई देती है वही हमारी (लेखकों की) धन संपदा कहलाती है, उसी प्राप्ति के लिए हम लोग माँ से हमेशा विन्नती याचनाकार बने रहते रहते है।

पुजा अर्चना ध्यान साधना करते रहते है, मन मस्तिष्क में कल्पनाओं का सीन (काल्पनिक दृश्य) खड़ा कर उस पर माँ शारदे का स्मर्ण करके लेखन कार्य शुरु करते है तब माँ शारदे हमे एक अलौकिक दुनिया में शून्य प्रवास में ले जाती है तब मन की ज्ञान ग्रन्थियों के किवाड़ अपने आप खुल जाते है फिर भूतकाल की घटित घटनाओं पर या फिर वर्तमान में समाज, संसार में सत्य घटित घटनाओं को कलम बद्ध करना या फिर कुछ भविष्य में अनहोनी होने वाली घटनाओं पर एक एक शब्दों से आकर्षित चित्र खड़ा कर दुनिया वालों को दिखाते रहते है, यह सब माँ शारदे हि लिखवाती है, तद पश्चात जब होश आता है तब देखता हूं की वही संसार सागर है जिसमे सब लोग रोजी रोटी की तलाश करते है और मैं भी वही करता हूं जी……. बस यही कला एक लेखक/कवि को सुर्खियों में बनाए रखती है वह उसके पाठकों की संख्या भी बढ़ाती रहती है बस यही हमारे लिए “माँ शारदे ने दिया हुआ प्रसाद” होता है जिसका हम हर समय वितरण करते रहते है, संपादक अपनी तरह तरह की पत्रिकाओं में प्रकाशित करते रहते है इसी कारण से हमेशा संपादकों से हमारा सम्पर्क बना रहता है व हम एक दुसरे के सहायक बने रहते है जी।

जांगिड ब्राह्मण समाज की नेशनल पत्रिकाओं की बात करे तो इसमें प्रमुख है अखिल भारतीय जांगिड ब्राह्मण महासभा की पत्रिका ” जांगिड ब्राह्मण” दीप विश्वकर्मा, विश्वकर्मा टू डै, विश्वकर्मा गौरव साथ ही “ज्ञान ज्योति दर्पण वेव साईड”, विश्वकर्मा टू डै न्यूज व अखिल भारतीय श्री विश्वकर्मा महा संगठन (फरीदाबाद) की डिजिटल पत्रिका व अनेक सैकड़ों समाज के ग्रुप और प्रेस मिडीया व डिजिटल मीडीया कार्यरत है, मौजूद है। इन सब प्रचार माध्यमों के संम्पादकों का समाज प्रगति में बहुमूल्य योगदान रहता है। इसलिए यह जांगिड ब्राह्मण समाज के लिए प्रचार-प्रसार के लिए विश्व विधालय जैसा ही प्रचार माध्यम ही है। इसीलिए अपनी बात सोच समझकर व ज्ञान वर्धक हो वही रखी जाए। समाज हित की बात होनी चाहिए। समाज को प्रगति पथ पर चलाने की दिशा-निर्देश की बात हो वही समाज के प्रचार-प्रसार के पट्टल पर रखी जानी चाहिए, ऐसा मेरा मानना है जी।
यही माँ “शारदे से मिला प्रसाद” ही कहलाता है जी।

जय श्री विश्वकर्मा जी की
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933

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